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श्री विधि से करें धान की खेती

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लेखक : Soumya Priyam

श्री विधि की खोज वर्ष 1983 में अफ्रीका के मेडागास्कर में की गई थी। इसलिए इसे मेडागास्कर विधि के नाम से भी जाना।  इसके अलावा इसे एस .आर.आई और सघन प्रणाली भी कहते हैं। इस विधि से धान की खेती करने पर बहुत कम पानी में भी अच्छी पैदावार होती है।

श्री विधि के फायदे

  • इस विधि से खेती करने में पानी कम लगता है।

  • इस विधि से खेती करने पर कम बीज (प्रति एकड़ जमीन के लिए 2 किलोग्राम बीज) में अधिक पैदावार होती है।

  • श्री विधि का प्रयोग खरीफ, रबी और गर्मी सभी मौसम में किया जा सकता है।

  • इस विधि से धान की सभी किस्मों की खेती की जा सकती है।

  • इस विधि से खेती करने पर रोग एवं कीटों के प्रकोप का खतरा कम हो जाता है।

श्री विधि से बीजों का उपचार एवं नर्सरी की तैयारी

  • इस विधि में बीज को उपचारित करने के लिए सबसे पहले पानी में नमक घोलें। इस घोल में बीज को डालें। इससे खराब बीज पानी के ऊपर तैरने लगेंगे।

  • अब आप खराब बीजों को निकाल कर अलग कर दें। अच्छे बीज को साफ पानी से धो कर नमक अलग कर लें।

  • बीज को बाविस्टिन पाउडर में मिला कर 24 घंटे तक अंकुरण के लिए रख दें।

  • नर्सरी में रासायनिक खाद की जगह गोबर खाद का उपयोग करें।

  • श्री विधि में आमतौर पर 14 दिन से ज्यादा पौधों को नहीं रखना चाहिए।

  • करीब 7 से 14 दिन या कम से कम 2 पत्तों वाले पौधों को मिट्टी समेत सावधानी से निकालें।

श्री विधि से पौधों की रोपाई

  • प्रति एकड़ जमीन में 60 से 80 क्विंटल कम्पोस्ट या गोबर खाद मिलाएं।

  • नर्सरी से पौधों को निकालने के आधे घंटे के अंदर रोपाई कर दें।

  • पौधों को क्यारियों में 10 इंच की दूरी पर लगाएं। क्यारीरों की दूरी भी लगभग 10 इंच रखें।

  • रोपाई के 10 से 15 दिन बाद वीडर से पहली निराई करें। इसके 10 से 15 दिन के अंतराल पर दूसरी निराई करें।

  • कम से कम 3 बाद वीडर से निराई करें। इससे खरपतवार नष्ट होते हैं और पौधों का विकास तेजी से होता है।

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2 September 2020

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