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सौंफ की सुगंध इन रोगों के कारण हो न जाए कम

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हमारे देश में सौंफ की खेती गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, पंजाब एवं हरियाणा में बड़े पैमाने पर की जाती है। इसके दाने हरे रंग के एवं जीरे की तरह नजर आते हैं। सुगंधित मसलों में इसका प्रमुख स्थान है। माउथ फ्रेशनर के तौर पर इसका इस्तेमाल सबसे अधिक किया जाता है। इसके अलावा इसके उपयोग से अंचार एवं कई अन्य व्यंजनों के स्वाद एवं सुगंध को आसानी से बढ़ाया जा सकता है। बात करें इसकी खेती की तो सौंफ की खेती रबी मौसम में की जाती है। अन्य फसलों की तरह सौंफ की फसल में भी कई रोगों का प्रकोप होता है। रोगों पर सही समय पर नियंत्रण नहीं किया तो पैदावार एवं गुणवत्ता पर बहुत बुरा असर होता है। आइए सौंफ के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोगों पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।

सौंफ के पौधों में लगने वाले कुछ प्रमुख रोग

  • पाउडरी मिल्ड्यू : इस रोग को छाछया रोग के नाम से भी जाना जाता है। फरवरी-मार्च महीने में इस रोग का प्रकोप अधिक होता है। इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियां भूरे रंग की होने लगती हैं। पत्तियों पर सफेद रंग के पाउडर की तरह पदार्थ उभरने लगते हैं। रोग बढ़ने पर पौधों के विकास में बाधा आती है। इस रोग पर नियंत्रण के लिए प्रति लीटर पानी में 2 ग्राम घुलनशील गंधक मिला कर छिड़काव करें।

  • जड़ एवं तना गलन रोग : यह एक फफूंद जनित रोग है। इस रोग के बचने के लिए खेत तैयार करते समय अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद के साथ प्रति एकड़ खेत में 2 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी मिलाएं। बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम कार्बेंडाजिम से उपचारित करें। इसके अलावा कई बार जल जमाव के कारण भी पौधों की जड़ें एवं तना सूखने लगता है। इस समस्या से बचने के लिए जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।

  • झुलसा रोग : यह रोग ऑल्टरनेरिया नामक कवक के कारण होता है। इस रोग के होने पर पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। रोग बढ़ने पर पेड़ों में बीज नहीं बनते हैं। अगर बीज बन भी गए हैं तो उनका आकार छोटा रह जाता है। इस रोग पर नियंत्रण के लिए मैंकोजेब के 2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें। आवश्यकता होने पर 15 दिनों के बाद दोबारा छिड़काव करें।

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Pramod

Dehaat Expert

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25 January 2022

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