विवरण
फसल चक्र अपना कर खेत की उर्वरा शक्ति रखें बरकरार
लेखक : Soumya Priyam
विभिन्न फसलों की खेती किसी निर्धारित क्षेत्र एवं समय पर करने की प्रक्रिया को फसल चक्र कहते हैं। फसल चक्र को सस्य आवर्तन , सस्य चक्र और क्रॉप रोटेशन भी कहा जाता है। इसकी अनेक फायदे हैं। फसल चक्र के भी कुछ नियम होते हैं। इन नियमों को अपना कर खेत की मिट्टी की उर्वरता बढ़ाई जा सकती है। इस पोस्ट के माध्यम से हम फसल चक्र के फायदे और इसके नियमों के बारे में जानेंगे।
फसल चक्र के फायदे
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फसल चक्र को अपना कर मिट्टी की रासायनिक, भौतिक और जैविक गुणों को बेहतर किया जा सकता है।
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इस विधि से कृषि करने पर मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा में वृद्धि होती है।
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मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में फसल चक्र का महत्वपूर्ण योगदान है।
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सघन फसल चक्र अपनाने से मिट्टी में जीवांश की मात्रा बढ़ती है।
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उचित फसल चक्र से मिट्टी में पनपने वाले कई रोग एवं कीटों पर नियंत्रण होता है।
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इसके साथ ही खरपतवार की समस्या कम होती है।
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मिट्टी में जल धारण करने की क्षमता बढ़ती है।
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खेत की मिट्टी में विषाक्त पदार्थ एकत्र नहीं होते।
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मिट्टी की संरचना में सुधार होता है।
फसल चक्र के नियम
किसान मित्रों फसल चक्र में विभिन्न प्रकार की फसलों का चयन करते समय नीचे दी गई बातों पर ध्यान देना आवश्यक है :
दलहन फसलों के बाद खाद्यान्न फसलों की खेती
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दलहन फसलों एवं अदलहन फसलों में अलग-अलग पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। दलहन फसलों में कम मात्रा में नाइट्रोजन और अधिक मात्रा में फास्फोरस की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत खाद्यान्न फसलों में नाइट्रोजन की आवश्यकता फास्फोरस से अधिक होती है। इसलिए दलहन फसलों के बाद खाद्यान्न फसलों की खेती करें। उदाहरण के लिए अरहर , मूंग, चना, उड़द के बाद ज्वार की फसल तथा मटर की फसल के बाद धान की खेती करनी चाहिए।
अधिक खाद की आवश्यकता वाली फसलों के बाद कम खाद की आवश्यकता वाली फसलों की खेती
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अधिक खाद की आवश्यकता वाली फसलों के बाद कम खाद की आवश्यकता वाली फसलों की खेती करनी चाहिए। इससे पहली फसल की बची हुई खाद दूसरी फसल के काम आ जाती है। खेती करने से काफी मात्रा में पोषक तत्वों की पूर्ति हो जाती है। उदाहरण के लिए आलू की फसल के बाद प्याज अथवा आलू की फसल के बाद मूंग की खेती करें।
अधिक सिंचाई की आवश्यकता वाली फसलों के बाद कम सिंचाई की आवश्यकता वाली फसलों की खेती
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ऐसी फसलें जिन्हें पानी की अधिक आवश्यकता होती है, उसके बाद कम पानी की आवश्यकता वाली फसलों की खेती करनी चाहिए। खेत में लगातार अधिक सिंचाई की आवश्यकता वाली फसलों की खेती करने से मिट्टी का जल स्तर ऊपर हो जाता है। इससे पौधों की जड़ों के विकास में कठिनाई होती है। इसलिए विपरीत सिंचाई की आवश्यकता वाली फसलों की खेती करें। जैसे : धान की फसल के बाद चना की फसल की खेती करें।
दूर-दूर पंक्तियों में लगाई जाने वाली फसलों के बाद घनी बुवाई या रोपाई वाली फसलों की खेती
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घनी लगाई जाने वाली फसलों से मृदा क्षरण कम होता है और दूरी पर लगाई जाने वाली फसलों से मिट्टी का कटाव अधिक होता है। मिट्टी की संरचना में सुधार के लिए दूर -दूर लगाई जाने वाली फसलों के बाद घनी बुवाई वाली फसलों की खेती करें।
कुछ अन्य नियम
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अधिक निराई-गुड़ाई की आवश्यकता वाली फसलों के बाद कम निराई-गुड़ाई की आवश्यकता वाली फसलों की खेती करें।
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गहरी जड़ों वाली फसलों के बाद उथली जड़ों वाली फसलों की खेती करें। जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति स्थिर रहती है।
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एक तरह के रोगों से प्रभावित होने वाली फसलों को लगातार एक ही खेत में ना लगाएं।
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2-3 वर्ष के फसल चक्र के बाद खरीफ में हरी खाद वाली फसलों की खेती करें।
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फसल चक्र में तिलहन फसलों को भी शामिल करें।
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2-3 वर्ष के फसल चक्र में खेत को एक बार खाली रखें।
अब तो आप जान ही गए फसल चक्र अपनाने के कितने फायदे हैं। आप भी फसल चक्र अपनाएं और अपने खेत की उर्वरा शक्ति को बढ़ाएं। यदि आपको यह जानकारी आवश्यक लगी है तो इस पोस्ट को लाइक करें एवं अन्य किसान मित्रों के साथ साझा करें इससे जुड़े अपने सवाल हमसे कमेंट के माध्यम से पूछें।
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16 टिप्पणियाँ
2 September 2020
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