विवरण
मादा पशुओं में प्रसव के पहले होने वाला गर्भपात रोग
लेखक : Pramod

मादा पशुओं को कई तरह के रोग होते हैं। जिनमें से एक है गर्भपात रोग। पशुओं में गर्भावस्था पूर्ण होने से पहले जीवित अथवा मृत्यु भ्रूण का मादा शरीर से बाहर निकलने को गर्भपात कहते हैं। इसके कारण लक्षण एवं बचाव के उपाय यहां से देखें।
क्यों होता है पशुओं का गर्भपात?
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मादा पशुओं को गर्भावस्था के समय लगने वाली चोट या किसी प्रकार का आघात इसका प्रमुख कारण है।
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गर्भावस्था के दौरान हारमोंस के असंतुलन से भी गर्भपात होता है।
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इसके अलावा पशुओं में होने वाले जीवाणु, विषाणु या परजीवी संक्रमण के कारण भी गर्भपात होता है।
क्या है गर्भपात के लक्षण?
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गर्भपात होने की स्थिति में पशु बेचैन रहते हैं।
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प्रभावित पशु की योनि से तरल पदार्थ निकलने लगता है जो कभी-कभी दुर्गंध युक्त तथा रक्त मिला हुआ हो सकता है।
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कभी-कभी अल्प विकसित भ्रूण, जीवित या मृत की अवस्था में बाहर आ सकता है।
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कई बार गर्भपात के समय जेर अंदर रह जाती है।
कैसे करें उपचार?
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मादा पशुओं में गर्भपात होने के बाद यदि जेर अंदर रह गई है तो उसे बाहर निकालें और एंटीसेप्टिक औषधि जैसे सेवलॉन, बीटाडीन या पोटेशियम परमैग्नेट के घोल से गर्भाशय की अच्छी तरह साफ करनी चाहिए।
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मादा पशुओं के गर्भाशय में जीवाणु नाशक टिकिया या बोलस जैसे फ्यूरिया, स्टेक्लीन या टेरामाइसीन डालना चाहिए।
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इसके साथ ही एंटीबायोटिक का एक कोर्स पूरा कराना चाहिए।
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गर्भपात होने के बाद गर्भाशय में बचे हुए पदार्थ को बाहर निकालने के लिए प्रोसालवीन या पी.जी.एफ.टू अल्फा की सुई लगाएं। आवश्यकता होने पर 10 से 12 दिनों के बाद दोबारा सुई लगाई जा सकती है।
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इन दवाओं का प्रयोग पशुओं में गर्भपात कराने के लिए भी किया जाता है।
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एक बार गर्भपात होने के बाद बार-बार इसकी संभावना बनी रहती है। इसलिए उचित उपचार कराना बेहद जरूरी है।
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गर्भपात की रोकथाम के लिए गर्भाधान के बाद 2 महीने तक लेप्टाडीन की 10 गोली दिन में 2 बार देना लाभदायक है।
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27 January 2021
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