धान की फसल में तना सड़न रोग का होना एक आम समस्या है। इस रोग के होने पर धान के पौधे सड़ने लगते हैं। फलस्वरूप फसल की पैदावार में कमी आ जाती है। यदि आपकी फसल में भी दिख रहे हैं इस रोग के लक्षण तो इस पोस्ट में दिए गए उपाय को अपना कर आप अपनी फसल को इस रोग से बचा सकते हैं।
रोग का लक्षण
शुरुआत में यह रोग जमीन की सतह से सटे हुए तनों में होता है।
धीरे-धीरे धान की पत्तियां पीली होने लगती हैं।
रोग के बढ़ने के साथ पत्तियों और तनों पर घाव जैसे उभरने लगते हैं।
रोग बढ़ने पर घाव बढ़ने लगते हैं और धान का तना अंदर से सड़ने लगता है और इससे सड़ने की तेज दुर्गंध भी आने लगती है।
तना सड़न रोग से ग्रसित पौधों के तनों के अंदर चिपचिपा पदार्थ भर जाता है।
बचने के उपाय
इस हानिकारक रोग से बचने के लिए पौधों की रोपाई से पहले खेत की मिट्टी को उपचारित करें।
धान की नर्सरी तैयार करते समय स्वस्थ एवं रोग रहित बीज का चयन करें।
बुवाई के लिए इस्तेमाल होने वाले स्वस्थ बीज को कवकनाशी से उपचरित करना आवश्यक है।
खेत में आवश्यकता से अधिक नाइट्रोजन के प्रयोग से बचें।
मिट्टी के पी.एच स्तर को बरकरार रखने के लिए खेत में पोटाश की कमी न होने दें।
खरपतवार पर नियंत्रण करना आवश्यक है। इसके लिए कुछ समय के अंतराल पर निराई-गुड़ाई करते रहें।
इसके प्रसार को कम करने के लिए खेत में जमे पानी को पूर्ण रूप से बाहर निकाल दें।
फसल काटने के बाद उसके अवशेषों को एकत्र कर जला दें या सड़ा दें।
इस रोग से बचने के लिए 10 से 15 दिनों के अंतराल पर 1 ग्राम प्रति लीटर हेक्साकोनाजोल 75 प्रतिशत डबल्यूजी या 3 ग्राम प्रति लीटर कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत डबल्यूपी या मैंकोजेब 75 प्रतिशत डबल्यूपी दवा का 1-2 बार छिड़काव करें।
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