विवरण
औषधीय गुणों से भरपूर है नीलगिरी, खेती से पहले जानें महत्वपूर्ण बातें
लेखक : Somnath Gharami

नीलगिरी को यूकेलिप्टस एवं सफेदा के नाम से भी जाना जाता है। यह कई तरह के औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसकी ताजी पत्तियों से तेल प्राप्त किया जाता है। जिसका प्रयोग कई तरह की दवाओं के निर्माण में किया जाता है। इसकी लकड़ी का प्रयोग बक्से, हार्ड बोर्ड, फर्नीचर, इमारत, ईंधन, आदि के निर्माण के लिए किया जाता है। इसके वृक्षों की लम्बाई 30 से 90 मीटर तक होती है।
कैसे करें नीलगिरी की पहचान?
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इसका वृक्ष पतला एवं बहुत लम्बा होता है।
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नीलगिरि की लकड़ी सफेद रंग की नजर आती है।
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इसकी पत्तियां लम्बी एवं नुकीली होती हैं।
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पत्तियों की सतह पर गांठें होती हैं। इन गांठों से तेल प्राप्त किया जाता है।
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नीलगिरि के फल सख्त होते हैं। फलों के अंदर छोटे-छोटे बीज होते हैं।
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पौधों की पल्लव पर सफेद रंग के फूल खिलते हैं।
किन राज्यों में होती है यूकेलिप्टस की खेती?
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हमारे देश में बिहार, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पश्चमी बंगाल, गुजरात, मध्य प्रदेश, पंजाब, गोआ, महाराष्ट्र, केरल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु में यूकेलिप्टस की खेती प्रमुखता से की जाती है।
नीलगिरी की खेती का उपयुक्त समय
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इसके पौधों की रोपाई वर्षा के मौसम में की जाती है।
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सिंचाई की उचित व्यवस्था होने पर पौधों की रोपाई फरवरी महीने में भी की जा सकती है।
सफेदा का पेड़ कैसे लगाएं?
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प्रति एकड़ भूमि में 200 पौधे लगाए जा सकते हैं।
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पौधों की रोपाई 2 से 2.5 मीटर की दूरी पर करें।
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7 February 2022
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