विवरण
आड़ू की बेहतर खेत के लिए मुख्य बातें
लेखक : Soumya Priyam
विदेशी फलों में शामिल आड़ू को सतालू या पीच भी कहते हैं। देखने में आकर्षक और खाने में स्वादिष्ट आड़ू की खेती किसानों के लिए आमदनी का एक बेहतर स्त्रोत साबित हो रहा है। कम समय में अधिक फल प्राप्त करने के कारण किसान इसकी खेती की तरफ अपनी रूचि दिखा रहे हैं। अगर आप इसकी खेती करना चाहते हैं तो यहां से इसकी खेती से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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पौधों की रोपाई के लिए वर्षा ऋतू सबसे बेहतर समय है।
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इसके अलावा दिसंबर - जनवरी महीने में भी इसकी रोपाई की जा सकती है।
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इसकी खेती लगभग हर तरह की मिट्टी में की जा सकती है।
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अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम है।
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मिट्टी का पी.एच स्तर 5.8 और 6.8 होना चाहिए।
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खेत की अच्छी तरह जुताई कर के खेत को समतल बना लें।
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पौधों की रोपाई करीब 15 से 20 फीट की दूरी पर करना चाहिए।
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कुछ समय के अंतराल पर खेत से खरपतवार नष्ट करते रहें।
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इसके पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।
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वर्ष में 6 बार सिंचाई से भी बेहतर फसल प्राप्त किया जा सकता है।
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ठंड के मौसम में 10 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।
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बारिश के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।
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फूलों के निकलने के समय, कलम लगाने की अवस्था में और फलों के विकास के समय फसल की सिंचाई करनी चाहिए।
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एक वर्ष के प्रत्येक पौधे को 10 किलोग्राम कम्पोस्ट खाद या गोबर की खाद का प्रयोग करें। साथ ही सभी पौधों को 200 ग्राम यूरिया, 190 ग्राम फॉस्फेट और 150 ग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है।
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पौधों को अच्छा आकार देने के लिए डालियों की कटाई- छंटाई करते रहना चाहिए।
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रोपाई के 2 वर्षों बाद पौधों में फल आने शुरू हो जाते हैं। पौधों में वर्ष में एक बार फल लगते हैं।
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जब फलों का रंग बदलने लगे और गुद्दा नरम होने लगे तब फलों की तुड़ाई कर लेनी चाहिए।
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अप्रैल से मई महीने के बीच इसकी तुड़ाई की जाती है।
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फलों की तुड़ाई डंठल के साथ करें। इससे तुड़ाई के समय फलों को नुकसान नहीं होगा और फलों की भंडारण क्षमता भी बढ़ेगी।
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2 September 2020
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