आधुनिक तरीके से संतरे की खेती कर कमाए अधिक मुनाफा
संतरे का फल रसदार तथा स्वास्थ्यवर्धक होता है. इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक होता है. इसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन सी पायी जाती है. इसके अलावा इसमें लोहा और पोटेशियम भी उचित मात्रा में पाया जाता है. संतरे की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें विद्यमान फ्रुक्टोज, देक्स्ट्रोज, खनिज एवं विटामिन शरीर में पहुंचाते ही ऊर्जा देना प्रारम्भ कर देते है. इसके सेवन से चुस्ती-फुर्ती बढती है. त्वचा में निखार आता है. तथा सौन्दर्य में वृध्दि होती है. इसके अलावा यह अनेक रोग जैसे सर्दी जुकाम, टीबी रोग, अस्थमा, मूत्र सम्बन्धी रोग आदि में फायदेमंद होता है.
👉उत्पत्ति एवं क्षेत्र
यह देश में संतरा या नारंगी के नाम से पुकारा जाता है. इसकी उत्पत्ति दक्षिण पूर्व एशिया माना जाता है. संतरा का वानस्पतिक नाम सिट्रस रेटिकुलेटा (Citrus reticulata) है. यह रूटेसी (Rutaceae) कुला का पौधा है. भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से उत्तर परदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में की जाती है.
👉भूमि एवं जलवायु
संतरे की खेती के लिए दोमट भूमि उपयुक्त होती है. साथ ही जल निकास का होना अच्छा रहता है. इसके अलावा भूमि का पी०एच० मान 5.5 से 6.0 के बीच होना चाहिए.
इसकी अच्छी पैदावार के लिए गर्म जलवायु अच्छी रहती है. पाला एवं अधिक बारिश से इसकी उपज को नुकसान पहुंचता है. इसकी फसल को पकने के लिए अच्छी धूप की आवश्यकता होती है.
👉उन्नत किस्में
कर्नाटक राज्य के लिए कुर्ग किस्म सबसे अच्छी मानी जाती है.
महारष्ट्र, नागपुर, मेघालय, व अन्य उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिए खासी किस्म सबसे उत्तम मानी गयी है.
उत्तर प्रदेश राज्य के लिए किन्नों किस्म सबसे उत्तम मानी जाती है.
पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश एवं राजस्थान के लिए किन्नो एवं बुटबल आदि उन्नत किस्में उत्तम मानी जाती है.
उत्तराँचल के लिए नागपुर, किन्नो, फ्यूट्रल्स अली आदि किस्मे उन्नत मानी जाती है.
👉खेत की तैयारी
बाग़ में लागए गए पौधों को एक बार लगाने से कई सालों तक उपज तक मिलती रहती है. पौधे लगाने पहले खेत की अच्छी तरह तैयार कर लेना चाहिए. इसके लिए कल्टीवेटर से दो से तीन जुताइयाँ कर मिट्टी को भुरभुरा बना लेना चाहिए. इसके अलावा पाटा लगाकर भूमि को समतल बना लेना चाहिए.
👉पौधा लगाने समय व दूरी
संतरा का पौधा लगाने का उचित समय जून-जुलाई तथा फरवरी-मार्च का महीना उचित रहता है. लेकिन पौधा लगाने के समय से एक महीना पहले 8 x 8 मीटर की दूरी पर गड्ढे खोद लेना चाहिए. इन गड्ढों में गोबर की सड़ी खाद और मिट्टी बराबर मात्रा में मिलाकर भर देना चाहिए. और पानी डालकर सिंचाई कर देनी चाहिए. जिससे मिट्टी नीचे बैठा जाय.
👉प्रवर्धन की विधियाँ
संतरा की पौध तैयार करने के लिए प्रवर्धन की विधियाँ अपनाई उनमे ढल चश्मा प्रमुख है. चश्मा चढाने के लिए रंगपुर लाइम, जम्भीरी, करना खट्टा, कोडाईकिथुली और क्लियोपेट्रा संतरा आदि मूलवृन्तों का प्रयोग करना चाहिए.
👉सधाई एवं काट-छांट
संतरे के पौधों की समय-समय पर सधाई एवं काट-छांट बहुत ही आवश्यक है. इसलिए जल प्ररोहों, रोगी, कीटयुक्त तथा सूखी टहनियों को निकल देना चाहिए.
👉खाद एवं उर्वरक
संतरा की अच्छी बढ़वार एवं उपज के लिए खाद एवं उर्वरक की उचित मात्रा का प्रयोग जरुर करना चाहिए. इसके लिए 800 ग्राम नाइट्रोजन, 500 ग्राम फ़ॉस्फोरस व 500 ग्राम पोटाश प्रति पेड़ प्रतिवर्ष देना चाहिए. फ़ॉस्फोर्स की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन और पोटाश की आधी मात्रा फरवरी मार्च में तथा शेष आधी मात्रा जून-जुलाई में देना चाहिए. 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट का अप्रैल, जून एवं सितम्बर में प्रयोग करे.
👉सिंचाई
सन्तरे के पौधा लागने के तुरंत बाद सिंचाई करनी चाहिए. उसके बाद आवश्यकता अनुसार सिंचाई करनी चाहिए. लेकिन गर्मी के मौसम में 10 दिन के अंतराल पर और जाड़ों के दिनों में 20-25 दिन के अंतराल पर सिंचाई कर देनी चाहिए.
बाग़ में उगाई जाने वाली सह फसले
संतरे के पौधे तैयार होने में 4 से 5 साल का समय लग जाता है. इसलिए जब तक पौधे छोटे हो बाग़ में बची हुई भूमि पर अन्य फसले उगाई जा सकती है. इसके लिए पपीता, पौधशाला के पौधे, सब्जियां तथा डाल वाली फसलें उगानी चाहिए. जहाँ भू-क्षरण की समस्या हो वहां लोबिया, ग्वार, सनई, ढेंचा आदि फसलों को उगना लाभप्रद होता है.
फूल तथा फल आने का समय
संतरा के पेड़ में मार्च-अप्रैल व जुलाई व सितम्बर में फूल आते है. नवम्बर-दिसम्बर, मार्च-मई व जुलाई-अगस्त में फल पकते है.
👉फलों की तुड़ाई
जब संतरा के फलों का रंग पीला और आकर्षक दिखाई दे. तभी उन्हें डंठल सहित तोड़ लेना चाहिए. जिससे फल अधिक समय तक ताजा रहे. अच्छे से पेंकिंग कर बाजार भेजना चाहिए.
👉उपज
संतरे की उपज उसके पौधे की देखरेख पर निर्भर करती है. अच्छी उपज तभी प्राप्त जब पौधे की अच्छी देखरेख होगी. एक पूर्ण विकसित पेड़ से 1000 से 1500 से तक फल प्राप्त होते है.