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वर्मीकम्पोस्ट : जैविक विधि से मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ाने का एक सरल तरीका
वर्मीकम्पोस्ट : जैविक विधि से मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ाने का एक सरल तरीका
वर्मीकम्पोस्ट को केंचुआ खाद भी कहा जाता है। हल्के काले और दानेदार वर्मीकम्पोस्ट में कई पोषक तत्वों के साथ कुछ हार्मोंस और एंजाइम्स भी होते हैं। इसमें किसी तरह की बदबू नहीं होती है, जिससे मच्छर एवं मक्खियां नहीं पनपते हैं। मिट्टी की उर्वरक क्षमता में वृद्धि, उच्च गुणवत्ता की फसल, पैदावार में बढ़ोतरी, आदि कई कारणों से जैविक कृषि में केंचुआ खाद का एक विशेष स्थान है। आइए वर्मीकम्पोस्ट से होने वाले लाभ पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।
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साधारण कम्पोस्ट की तुलना में केंचुआ खाद में अधिक मात्रा में पोषक तत्व मौजूद होते हैं।
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इसमें गोबर की खाद की अपेक्षा अधिक मात्रा में नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश पाया जाता है।
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वर्मीकम्पोस्ट जल्दी तैयार हो जाता है। करीब 2 से 3 महीने में हम उच्च गुणवत्ता की खाद प्राप्त कर सकते हैं।
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इसके उपयोग से मिट्टी की उर्वरक क्षमता में वृद्धि होती है।
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इसके प्रयोग से मिट्टी की भौतिक संरचना में परिवर्तन होता है और मिट्टी की जल धारण करने की क्षमता में बढ़ोतरी होती है।
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इसके प्रयोग से मिट्टी भुरभुरी होती है और मिट्टी में वायु संचार भी बेहतर होता है।
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खेत में केंचुआ खाद प्रयोग करने से फसलों की पैदावार में लगभग 15 से 20 प्रतिशत तक की वृद्धि होती है।
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वर्मी कम्पोस्ट डालने से फूलों और फलों के आकार एवं गुणवत्ता में वृद्धि होती है।
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इसके प्रयोग से पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
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केंचुआ खाद में हानिकारक रसायनों का प्रयोग नहीं किया जाता है। इसलिए यह खेत की मिट्टी, फसल एवं हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
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खरपतवार एवं विभिन्न कीटों के प्रकोप की संभावना कम हो जाती है।
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इसका उपयोग किचन गार्डन में भी किया जा सकता है।
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