फ्यूजेरियम विल्ट यानि उकठा रोग किसी एक फसल की बीमारी नहीं है। इस रोग से अंगूर, कद्दू, कपास, टमाटर, मटर, मसूर, मिर्च, सेम, अरहर, गन्ना, चना आदि कई फसलें प्रभावित होती हैं। इस रोग के होने पर फसलों की उपज में भारी मात्रा में कमी आ सकती है। यदि आपको इस रोग के लक्षण की जानकारी नहीं है तो घबराएं नहीं। इस पोस्ट के माध्यम से आप इस रोग के लक्षण के साथ ही रोग से बचाव के उपाय भी जान सकेंगे।
रोग का कारण
यह फ्यूजेरियम समूह के फफूंद द्वारा जनित रोग है जो मिट्टी में काफी लंबे समय तक रहते हैं।
यह रोग बार-बार मौसम के बदलाव के कारण भी उत्पन्न होता है।
रोग का लक्षण
शुरुआत में पौधों की ऊपरी पत्तियां मुरझाने लगती हैं।
इस रोग के होने पर पत्तियों के साथ पौधों के मुलायम भाग भी प्रभावित होते हैं।
धीरे-धीरे पूरा पौधा सूख जाता है।
जड़ के पास तनों को फाड़ कर देखने पर अंदर काले, कत्थई या लाल रंग के धागों जैसे कवक दिखाई देते हैं।
बचाव के उपाय
इस रोग से बचने के लिए खेत में बार-बार एक ही फसल की खेती न करें।
फसल चक्र को अपनाएं। तथा संक्रमित पौधों को सावधानी पूर्वक खेत से बाहर निकाल कर नष्ट कर दें।
संक्रमित खेत में ऐसी फसलें लगाने से बचें।
यदि रोग प्रतिरोधी किस्म उपलब्ध हो तो उसी का चयन करें।
मिट्टी का पी.एच 6.5 - 7 तक बनाए रखें।
इस रोग से बचने के लिए बुवाई से पहले बीज का उपचार करना जरूरी है।
प्रति किलोग्राम बीज को 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी 1% डबल्यूपी से उपचारित करें।
खेत तैयार करते समय प्रति एकड़ खेत में 40 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद में 1.5 से 2 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी मिलाकर खेत में समान रूप से मिलाएं।
इसके अलावा मिट्टी उपचार मे आप खेत की तैयारी करते समय प्रति एकड़ 20 किलोग्राम यूरिया में 2 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी मिट्टी में मिलाएं या 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में कॉपर ऑक्सी क्लोराइड मिलाकर छिड़काव भी कर सकते हैं।
रोग के लक्षण दिखने पर कार्बेन्डाजिम 50 डब्लू.पी 0.2 प्रतिशत घोल को पौधों की जड़ों में डालें।
इस पोस्ट में दिए गए उपायों को अपना कर आप इस रोग से निजात पा सकते हैं। अगर आपको इस पोस्ट में दी गई जानकारी आवश्यक लगी है तो इस पोस्ट को लाइक करें। इससे जुड़े अपने सवाल हमसे कमेंट के माध्यम से पूछ सकते हैं।
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