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डॉ. प्रमोद मुरारी
कृषि विशेषयज्ञ
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उकठा रोग के प्रति संवेदनशील इस फसल में लक्षणों को अनदेखा करना पड़ सकता है भारी

उकठा रोग के प्रति संवेदनशील इस फसल में लक्षणों को अनदेखा करना पड़ सकता है भारी

चने की फसल फफूंद जनित रोगों के प्रति बेहद संवेदनशील पाई गई है। ये फफूंद मिट्टी में कई सालों तक जीवित रहने वाली होती है और केवल चने की फसल तक सीमित न रहकर अन्य फसलों को भी तेजी से प्रभावित करती है। चने में फफूंद जनित रोग में प्रमुख उकठा रोग सामान्यतः मृदा एवं बीज जनित बीमारी है, जो पौधों के पूरे जीवन काल में किसी भी अवस्था में फसल पर देखने को मिल सकती है। रोग का प्रमुख कारक फ्यूजेरियम ऑक्सिस्पोरम प्रजाति नामक फफूंद को कहा जाता है। वैसे तो यह रोग सभी चना उत्पादक क्षेत्रों में फैल सकता है परन्तु जिन स्थानों में ठंड अधिक एवं लम्बे समय तक पड़ती है, वहां इस रोग का प्रकोप सामान्यतः गर्म क्षेत्रों के मुकाबले कम देखने को मिलता है। फसल में 10 से 12 % तक पैदावार में हानि के साथ उकठा रोग बगैर पोषक या नियन्त्रक के भी मृदा में लगभग छः वर्षों तक जीवित रह सकता है और पौधों की दो अवस्थाओं बुवाई के 30 दिनों के भीतर और फसल में फूल फलियां बनने पर अधिकतर अपना प्रभाव डालता है। रोग मृदा में अधिक नमी एवं 25 से 30° सेंटीग्रेड तापमान होने पर भी तीव्र गति से फैलता है।

रोग के लक्षण

  • शुरुआत में रोगाणु फफूंद जड़ों के ऊपर आक्रमण करके पौधों के ऊपरी जल आपूर्ति को बाधित कर देता है।

  • रोग ग्रस्त पौधे हल्के हरे रंग के होकर गिरने लगते हैं।

  • बड़े पौधों की पत्तियां व कोंपले झुकने लगती हैं।

  • बाहर से देखने पर जड़े सड़ी हुई नहीं दिखती है किन्तु आन्तरिक जाइलम वाहिकाओं के गहरे भूरे रंग को देख जा सकता है।

  • रोग ग्रस्त पौधे की फलियां व बीज सामान्य पौधों की तुलना में छोटे, सिकुड़े व बदंरग दिखाई पड़ते हैं।

  • रोग की प्रारम्भिक अवस्था में संक्रमित पौधे का ऊपरी भाग मुरझा जाता है। पौधों की पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं और मुरझाकर झुक जाती हैं। संक्रमित पौधे दूर से ही पहचाने जा सकते हैं, जो अंत में पूर्ण रूप से सूख जाते हैं।

  • यह रोग पौधे को किसी भी अवस्था में संक्रमित कर सकता है। परन्तु सामान्यतः या तो फसल की पौध अवस्था (बुवाई के 4-6 सप्ताह बाद) या फिर फसल की फूल व फली लगने वाली अवस्था में इस रोग का प्रकोप अधिक होता है।

  • उकठा ग्रस्त पौधे में रोग की उग्र अवस्था में तने के निचले भाग में संवहन उतकों का रंग भी भूरा या काला पड़ जाता है |

  • रोगी पौधे को उखाड़ कर फाड़ कर देखने पर उनकी जड़ो तथा तनों का बीच वाला भाग काला दिखाई देता है।

रोग प्रबंधन

  • रोग मुक्त बीज का चयन करे व खेत में उचित सफाई रखें।

  • गर्मी के मौसम में खेत की गहरी जुताई करने से रोग के प्रकोप में कमी आती है।

  • बुवाई अक्टूबर माह के अंत या नवम्बर माह के प्रथम सप्ताह में पूर्ण कर लेनी चाहिए।

  • 2 टन प्रति एकड़ की दर से गोबर की खाद प्रयोग करने से भी उकठा रोग में कमी आती है।

  • फफूंदनाशी द्वारा बीज उपचार करके  ही फसल बुवाई करें। इसके लिए टेबुकोनाज़ोल 5.4% एफ एस  की 4.0 मिलीलीटर मात्रा का प्रयोग प्रति किलोग्राम बीज उपचार के लिए करें।

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