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टमाटर के पौधों को नर्सरी में आर्द्रगलन रोग से कैसे बचाएं?
टमाटर के पौधों को नर्सरी में आर्द्रगलन रोग से कैसे बचाएं?
आर्द्रगलन यानी डैम्पिंग ऑफ रोग को विभिन्न क्षेत्रों में गलका रोग के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग का प्रकोप नर्सरी में टमाटर के पौधों में अधिक होता है। टमाटर के अलावा इस रोग से बैंगन, मिर्च, शिमला मिर्च, आदि कई फसलें प्रभावित होती हैं। इस रोग के कारण छोटे पौधे नर्सरी में ही नष्ट हो जाते हैं। गलका रोग का लक्षण एवं इस रोग से टमाटर के छोटे पौधों को बचाने के उपाय यहां से देखें।
रोग का कारण
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यह रोग मृदा जनित फफूंद जैसे अल्टरनेरिया, फ्युजेरियम, आदि के कारण होता है।
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अधिक तापमान में इस रोग का प्रकोप बढ़ जाता है।
रोग का लक्षण
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रोग होने पर बीज के अंकुरण में बाधा आती है।
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बुवाई की गई बीज सड़ जाती है।
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यदि बीज अंकुरित हो भी गई तो पौधों की पत्तियों एवं तने पर इसके लक्षण साफ नजर आते हैं।
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पत्तियों के ऊपरी भाग पर छोटे-छोटे काले धब्बे उभरने लगते हैं।
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रोग बढ़ने पर पत्तियां पीली होकर सूखने लगती हैं।
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पौधों का तना एवं जड़ सड़ जाते हैं।
बचाव के उपाय
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इस रोग से बचने के लिए प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम ट्राइकोडर्मा विरिडी से उपचारित करें।
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इसके अलावा प्रति किलोग्राम बीज को 3 ग्राम कार्बेन्डाज़िम 50 प्रतिशत या बाविस्टिन से भी उपचारित किया जा सकता है।
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इसके अलावा प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम केप्टान 75 डब्ल्यूपी से भी उपचारित कर सकते हैं।
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10 लीटर पानी में 100 ग्राम ट्राइकोडर्मा मिला कर घोल तैयार करें। मुख्य खेत में पौधों की रोपाई से पहले जड़ों को 10 मिनट तक इस घोल में डुबो कर रखें। इससे मुख्य खेत में भी टमाटर के पौधों को आर्द्रगलन रोग से बचाया जा सकता है।
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इस पोस्ट में बताई गई दवाओं से बीज उपचारित करके टमाटर के पौधों को गलका रोग से बचा सकते हैं। यदि आपको यह जानकारी आवश्यक लगी है तो इस पोस्ट को लाइक करें एवं इसे अन्य किसानों के साथ साझा भी करें। इससे जुड़े अपने सवाल हमसे कमेंट के माध्यम से पूछें।
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