हमारे देश में केरल, ओडिशा, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल एवं उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर तोरई की खेती की जाती है। तोरई प्रोटीन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन एवं विटामिन ए से भरपूर होने के साथ खाने में भी बहुत स्वादिष्ट होती है, इसलिए छोटे गांव हो या बड़े शहर, हर जगह इसकी मांग बढ़ती जा रही है। बढ़ती मांग को ध्यान में रखते हुए इसकी खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकती है। यदि आप भी तोरई की खेती करना चाहते हैं तो खेत तैयार करते समय कुछ बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है। आइए तोरई की खेती के लिए खेत तैयार करते समय ध्यान में रखने वाली कुछ बातों पर जानकारी प्राप्त करें।
बुवाई का सही समय
जायद मौसम में तोरई की बुवाई के लिए जनवरी से मार्च का महीना उपयुक्त है।
खरीफ मौसम में इसकी बुवाई जून-जुलाई महीने में करें।
बुवाई से 10-15 दिन पहले खेत की जुताई का कार्य शुरू कर दें।
भुरभुरी मिट्टी
भुरभुरी मिट्टी बीज के अंकुरण के लिए बेहतर है। इसलिए खेत तैयार करते समय जुताई के बाद पाटा अवश्य लगाएं। खेत तैयार करते इस बात का भी विशेष ध्यान रखें कि खेत में जल जमाव न हो।
क्यारियां तैयार करना
जुताई एवं पाटा लगाने के बाद खेत में क्यारियां तैयार करें। इससे सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई में भी आसानी होती है।
सभी क्यारियों के बीच 2.5 से 3 मीटर की दूरी रखें। वहीं पौधों से पौधों के बीच 50 सेंटीमीटर की दूरी रखें।
पौधों को सहारा देना
तोरई के पौधे लताओं की तरह बढ़ते हैं। पौधों को सहारा देना आवश्यक है। सहारा देने से बेलियों का विकास अच्छा होता है। पौधों को सहारा देने से फल भी भूमि से नहीं सटते। इससे फलों में कई मृदा जनित रोग एवं कीटों का प्रकोप कम होता है। इसलिए खेत में लकड़ी एवं रस्सियों को बांध कर पौधों को सहारा दें।
हमें उम्मीद है खेत तैयार करते समय इन बातों को ध्यान में रख कर आप तोरई की बेहतर उपज प्राप्त कर सकते हैं। यदि आपको यह जानकारी पसंद आई है तो हमारे पोस्ट को लाइक करें। इस जानकारी को अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचाने के लिए इस पोस्ट को अन्य किसान मित्रों के साथ साझा भी करें। तोरई की खेती से जुड़े अपने सवाल हमसे कमेंट के माध्यम से पूछें।
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