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डॉ. प्रमोद मुरारी
कृषि विशेषयज्ञ
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तारामीरा की खेती से मुनाफे के साथ बढ़ेगी भूमि की उर्वरक क्षमता

तारामीरा की खेती से मुनाफे के साथ बढ़ेगी भूमि की उर्वरक क्षमता

तारामीरा सरसों की प्रजाति की एक फसल है। इसके पौधों की लम्बाई २ से 3 फीट तक होती है। राजस्थान में तारामीरा की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। कई तरह के पोषक तत्वों एवं औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण यह हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक है। आइए इस पोस्ट के माध्यम से हम तारामीरा की खेती पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।

बुवाई एवं कटाई का सही समय

  • इसकी बुवाई के लिए अक्टूबर-नवंबर का महीना उपयुक्त है।

  • फसल की कटाई मार्च-अप्रैल महीने में की जाती है।

बीज की मात्रा एवं बीज उपचारित करने की विधि

  • प्रति एकड़ भूमि में खेती करने के लिए 1.6 से 2 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

  • बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 1.5 ग्राम मैंकोजेब से उपचारित करें।

उपयुक्त मिट्टी

  • इसकी खेती के लिए हल्की दोमट मिट्टी उपयुक्त है।

  • अम्लीय एवं क्षारीय मिट्टी में इसकी खेती नहीं करनी चाहिए।

लागत एवं पैदावार

  • प्रति एकड़ भूमि में तारामीरा की खेती करने पर करीब 4,000 रुपए की लागत आती है।

  • प्रति एकड़ भूमि से करीब 10 से 12 क्विंटल तक पैदावार होती है।

  • बाजार में इसकी कीमत 7,000 से 10,000 रुपए प्रति क्विंटल है। इससे आप होने वाले मुनाफे का अंदाजा लगा सकते हैं।

तारामीरा की खेती से होने वाले फायदे

  • इसकी खेती में कम लागत में अधिक मुनाफा होता है।

  • इसकी खेती कम पानी वाले क्षेत्रों में भी की जा सकती है।

  • कम उपजाऊ भूमि में भी इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।

  • इस फसल को गाय, बकरी, नील गाय, जैसे जानवरों के द्वारा खाने का भी खतरा नहीं होता है।

  • इसकी खेती से मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ती है।

  • इससे मुंह के कैंसर, त्वचा के कैंसर, डायबिटीज, आदि रोगों की दवाएं तैयार की जाती हैं।

हमें उम्मीद है यह जानकारी आपके लिए महत्वपूर्ण साबित होगी। यदि आपको इस पोस्ट में दी गई जानकारी पसंद आई है तो इस पोस्ट को लाइक करें एवं इसे अन्य किसानों के साथ साझा भी करें। जिससे अधिक से अधिक किसानों तक यह जानकारी पहुंच सके। इससे जुड़े अपने सवाल हमसे कमेंट के माध्यम से पूछें। पशु पालन एवं कृषि संबंधी अन्य ज्ञानवर्धक जानकारियों के लिए जुड़े रहें देहात से।

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