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सरसों : तना गलन रोग पर नियंत्रण के सटीक उपाय
सरसों : तना गलन रोग पर नियंत्रण के सटीक उपाय
तना गलन रोग के कारण सरसों की फसल को सबसे अधिक नुकसान पहुंचता है। इस रोग के लक्षण पौधों के तने पर साफ नजर आते हैं। फफूंद का प्रकोप होने पर यह रोग उत्पन्न होता है। इसके अलावा खेत में जल जमाव एवं तना गलन रोग से संक्रमित बीज की बुवाई के कारण भी सरसों की फसल में यह रोग होता है। आइए सरसों की फसल में तना गलन रोग से होने वाले नुकसान एवं इस पर नियंत्रण के तरीकों पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।
तना गलन रोग से होने वाले नुकसान
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इस रोग से प्रभावित पौधों के तने पर धब्बे नजर आने लगते हैं।
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रोग बढ़ने पर पौधों का तना सड़ने लगता है।
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कुछ समय बाद पौधा नष्ट हो जाता है।
तना गलन रोग पर नियंत्रण के तरीके
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इस रोग से बचने के लिए खेत में जल जमाव न होने दें।
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सरसों की बुवाई के लिए रोग रहित स्वस्थ बीजों का चयन करें।
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पौधों को तना गलन से बचने के लिए बुआई के 45-50 दिन बाद बाविस्टीन के 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें। आवश्यकता होने पर पर 15 दिनों बाद दोबारा छिड़काव करें।
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इस रोग पर नियंत्रण के लिए प्रति लीटर पानी में 3 ग्राम कार्बेन्डाज़िम 50 प्रतिशत डब्ल्यू.पी या मैंकोज़ेब 75 प्रतिशत डब्ल्यू.पी मिलाकर छिड़काव करें।
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