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सफेद मूसली की बढ़ी मांग, ऐसे करें खेती और कमाएं मुनाफा
सफेद मूसली की बढ़ी मांग, ऐसे करें खेती और कमाएं मुनाफा
सफेद मूसली की खेती भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती है। इसकी जड़ों से कई तरह की दवाइयां बनाई जाती है। हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु, केरल एवं पश्चिम बंगाल में इसकी व्यावसायिक खेती की जाती है। इसका उपयोग खांसी, अस्थमा, मधुमेह, बवासीर, चर्म रोग, पीलिया, मूत्र रोग, ल्यूकोरिया, आदि के उपचार में किया जाता है। सफेद मूसली की खेती 8 से 9 महीने की फसल है। आइए इसकी खेती से जुड़ी कुछ आवश्यक जानकारियां प्राप्त करें।
सफेद मूसली की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी एवं जलवायु
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इसकी खेती के लिए हल्की रेतीली दोमट मिट्टी सर्वोत्तम है।
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इसके अलावा लाल एवं काली चिकनी मिट्टी में भी इसकी खेती आसानी से की जा सकती है।
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क्षारीय मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं है।
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मिट्टी का पीएच स्तर 7.5 से कम होना चाहिए।
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इसकी खेती गर्म एवं आर्द्र मौसम में की जाती है।
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इसकी खेती के लिए वर्षा का मौसम सर्वोत्तम है।
खेत तैयार करने की विधि
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खेत तैयार करते समय मिट्टी पलटने वाली हल्दी से 1-2 बार गहरी जुताई करें।
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इसके बाद खेत को कुछ दिनों तक खुला रहने दें।
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प्रति एकड़ खेत में 100 क्विंटल अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाकर सिंचाई करें।
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कुछ दिनों बाद मिट्टी सूखने पर खेत की अच्छी तरह जुताई करके मिट्टी को समतल एवं भुरभुरी बना लें।
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औषधीय गुणों से भरपूर सफेद मूसली का उपयोग आयुर्वेदिक औषधियों के निर्माण में किया जाता है इसलिए इसमें रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग न करें।
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पौधों के अच्छे विकास के लिए खेत में गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट का प्रयोग करें।
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इसके अलावा प्रति एकड़ भूमि में 120 से 140 किलोग्राम तक नीम की खली या करंज की खली मिला सकते हैं।
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जुताई के बाद खेत में क्यारियां तैयार करें।
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सभी कार्यों के बीच 20 सेंटीमीटर की दूरी रखें।
बीज की मात्रा एवं बुवाई की विधि
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इस की खेती बीज की बुवाई एवं कंदों की रोपाई के द्वारा की जाती है।
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प्रति एकड़ खेत में 160 से 200 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
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पौधों से पौधों के बीच की दूरी 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए।
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वहीं यदि कंदों की रोपाई के द्वारा इसकी खेती की जा रही है तो प्रति एकड़ खेत में 16,000 कंदों की आवश्यकता होती है।
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बुवाई से पहले बीज एवं कंदों को 1:10 के अनुपात में गोमूत्र एवं पानी के घोल में 1 से 2 घंटे तक डुबोकर उपचारित करें।
सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण
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बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें।
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वर्षा नहीं होने स्थिति में 1 सप्ताह के अंतराल पर सिंचाई करें।
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वर्षा होने पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती।
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खरपतवार पर नियंत्रण करने के लिए निराई-गुड़ाई करें।
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निराई-गुड़ाई के समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि पौधों की जड़ों को नुकसान ना हो।
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जड़ों को नुकसान से बचाने के लिए बुवाई से 15 से 20 दिनों बाद हल्की गुड़ाई करें।
फसल की खुदाई
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जब पौधों की पत्तियां पीली होकर सूखने लगे और जड़ों का छिलका कठोर हो तब फसल की खुदाई कर लेनी चाहिए।
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खुदाई के बाद जड़ों को पानी से अच्छी तरह साफ करके तीन-चार दिनों तक धूप में सूखाएं।
हमें उम्मीद है यह जानकारी आपके लिए महत्वपूर्ण साबित होगी। यदि आपको यह जानकारी पसंद आई है तो इस पोस्ट को लाइक करें एवं इसे अन्य किसानों के साथ साझा भी करें। जिससे अन्य किसान मित्र भी सफेद मूसली की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकें। अपने आने वाले पोस्ट में हम सफेद मूसली से जुड़ी कुछ अन्य जानकारियां साझा करेंगे। तब तक पशुपालन एवं कृषि संबंधी अधिक जानकारियों के लिए जुड़े रहें देहात से।
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