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सनाय में हैं कई औषधीय गुण, इस तरह करें खेती
सनाय में हैं कई औषधीय गुण, इस तरह करें खेती
पिछले कुछ वर्षों में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में औषधीय पौधों की मांग बढ़ने लगी है। औषधीय पौधों की मांग बढ़ने के कारण इनकी खेती करने वाले अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। इन पौधों में सनाय की खेती भी शामिल है। सनाय के पौधों की ऊंचाई 1 से 2 मीटर होती है। तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। हमारे देश में करीब 25,000 हेक्टेयर क्षेत्रों में इसकी जाती है। अगर आप भी करना चाहते हैं सनाय की खेती तो इससे जुड़ी कुछ जानकारियां होना आवश्यक है। आइए इस विषय में विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।
सनाय की खेती के लिए उपयुक्त समय
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उत्तर भारतीय क्षेत्रों में फरवरी-मार्च महीने में इसकी बुवाई की जाती है।
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दक्षिण भारत के असिंचित क्षेत्रों में सितंबर-अक्टूबर महीने में बुवाई करनी चाहिए।
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दक्षिण भारत के सिंचित क्षेत्रों में इसकी बुवाई फरवरी-मार्च महीने में की जा सकती है।
उपयुक्त मिट्टी एवं जलवायु
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इसकी खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी, लाल दोमट मिट्टी और सख्त खुरदरी दोमट मिट्टी, लवणीय दोमट मिट्टी एवं उपजाऊ चिकनी मिट्टी उपयुक्त है।
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लवणीय मिट्टी में इसकी खेती करने पर पौधों के विकास में बाधा आती है।
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मिट्टी का पी.एच. स्तर 8.5 तक होना चाहिए।
बीज की मात्रा एवं बीज उपचारित करने की विधि
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सिंचित क्षेत्रों में प्रति एकड़ भूमि में खेती करने के लिए 6 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
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सिंचित क्षेत्रों में पंक्तियों में बुवाई करने पर 2.4 किलोग्राम बीज पर्याप्त है।
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असिंचित क्षेत्रों में प्रति एकड़ भूमि में खेती करने के लिए 10 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
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बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 3 ग्राम थीरम से उपचारित करना चाहिए।
खेत की तैयारी एवं बुवाई की विधि
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खेत तैयार करते समय सबसे पहले 1 बार गहरी जुताई करें। इससे खेत में पहले से मौजूद खरपतवार नष्ट हो जाते हैं।
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इसके बाद 2 से 3 बार हल्की जुताई कर के मिट्टी को समतल बना लें।
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पौधों के अच्छे विकास के लिए प्रति एकड़ भूमि में 4 टन एफ.वाई.एम. (गोबर की खाद) का प्रयोग करें।
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बेहतर पैदावार के लिए बीज की बुवाई पंक्तियों में करें।
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सभी पंक्तियों के बीच 45 सेंटीमीटर की दूरी रखें।
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पौधों से पौधों के बीच करीब 30 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए।
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बीज की बुवाई 1 से 2 सेंटीमीटर की गहराई में करें।
सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण
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बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें।
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बुवाई के करीब 25 से 30 दिनों बाद दूसरी सिंचाई करें।
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इस तरह बुवाई से कटाई तक करीब 4 से 6 बार सिंचाई की जाती है।
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मिट्टी में मौजूद नमी के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए।
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खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए आवश्यकता के अनुसार निराई-गुड़ाई करें।
फसल की कटाई एवं भंडारण
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बुवाई के करीब 60 से 65 दिनों के बाद पहली कटाई की जा सकती है।
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बुवाई के 90 से 110 दिनों के बाद दूसरी कटाई करें।
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बुवाई के 135 से 150 दिनों के बाद फसल की तीसरी कटाई की जाती है।
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कटाई के बाद पत्तियों को 6 से 10 घंटों तक खुली धूप में सूखना चाहिए।
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पत्तियों एवं फलियों के छिलकों का भंडारण नमी रहित स्थान में करें।
पैदावार
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सिंचित क्षेत्रों में प्रति एकड़ भूमि से 3.2 से 4 क्विंटल पत्तियां एवं 1.6 से 2 क्विंटल फलियों के छिलके प्राप्त होते हैं।
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असिंचित क्षेत्रों में प्रति एकड़ भूमि से 2 से 2.8 क्विंटल पत्तियां एवं 0.8 से 1.2 क्विंटल फलियों के छिलके प्राप्त होते हैं।
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