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शुष्क क्षेत्रों के लिए सुगंधित पामारोजा घास की उन्नत उत्पादन तकनीकी

शुष्क क्षेत्रों के लिए सुगंधित पामारोजा घास की उन्नत उत्पादन तकनीकी

आज हम एक ऐसे फसल की बात कर रहे हैं जिसकी खुशबु गुलाब की तरह होती है। इसलिए इस पौधे को पामारोजा कहा जाता है। पामारोजा घास को रोषा घास के नाम से भी जाना जाता है। इसका इस्तेमाल इत्र एवं अन्य सौंदर्य प्रसाधन के निर्माण में किया जाता है। इसके अलावा इससे कई तरह की आयुर्वेदिक दवाएं भी तैयार की जाती हैं। बहुवर्षीय फसल होने के कारण एक बार इसकी खेती कर के कई 5-6 वर्षों तक फसल प्राप्त किया जा सकता है। इसके पौधों की लम्बाई करीब 100 से 150 सेंटीमीटर होती है। इसकी खेती मुख्यतः तेल प्राप्त करने के लिए की जाती है। आइए पामारोजा घास की खेती पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।

बीज की मात्रा

  • प्रति एकड़ भूमि में खेती करने के लिए 3 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

  • छिड़काव विधि से खेती करने के लिए प्रति एकड़ भूमि में करीब 7 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

उपयुक्त मिट्टी एवं जलवायु

  • पौधों के विकास के लिए गर्म एवं शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है।

  • उचित जल निकासी वाली भूमि में इसकी खेती करनी चाहिए।

  • मिट्टी का पीएच स्तर सामान्य से 9.5 तक होना चाहिए।

  • जल जमाव की स्थिति पौधों के लिए हानिकारक है। इसलिए इसकी खेती असिंचित एवं शुष्क क्षेत्रों में भी सफलतापूर्वक की जा सकती है।

  • बीज की बुवाई 1 से 1.5 सेंटीमीटर की गहराई में करें। इससे अंकुरण में आसानी होती है।

  • नर्सरी में बीज की रोपाई करने 30 से 40 दिनों बाद पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं।

खेत तैयार करने की विधि

  • सबसे पहले एक बाद गहरी जुताई करें।

  • इसके बाद 2 से 3 बार गहरी जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरी बना लें।

  • अच्छी पैदावार के लिए खेत तैयार करते समय गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग करें।

  • इसके अलावा प्रति एकड़ खेत में 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फॉस्फोरस और 20 किलोग्राम पोटाश मिलाएं।

  • पौधों की रोपाई के लिए खेत में क्यारियां तैयार करें।

  • सभी क्यारियों के बीच 60 सेंटीमीटर की दूरी रखें।

सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण

  • पौधों की रोपाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई करें।

  • वर्षा होने पर फसल में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।

  • पौधों के उचित विकास के लिए फसल की प्रत्येक कटाई के बाद सिंचाई करना आवश्यक है।

  • खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए कुछ समय के अंतराल पर निराई-गुड़ाई करें।

फसल की कटाई एवं पैदावार

  • सिंचित क्षेत्रों में एक वर्ष में 3 से 4 बार फसल की कटाई की जा सकती है।

  • असिंचित क्षत्रों में वर्ष में 2 बार फसल की कटाई कर सकते हैं।

  • इसकी फूल एवं पत्तियों से तेल प्राप्त होता है।

  • पत्तियों की तुलना में फूलों में तेल की मात्रा अधिक होती है। इसलिए फसल में करीब 50 प्रतिशत तक फूल आने के बाद कटाई करें।

  • फसल की कटाई भूमि की सतह से 10 से 15 सेंटीमीटर की ऊंचाई से करें।

  • सिंचित क्षेत्रों में प्रति एकड़ खेत से प्रति वर्ष 60 से 70 किलोग्राम तेल प्राप्त होता है।

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