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शलजम : बेहतर पैदावार के लिए रखें इन बातों का रखें ध्यान
शलजम : बेहतर पैदावार के लिए रखें इन बातों का रखें ध्यान
शलजम ठंड के मौसम में खेती की जाने वाली कुछ जड़ वाली फसलों में शामिल है। इसका सब्जी एवं सलाद के तौर पर सबसे अधिक उपयोग किया जाता है। इसके अलावा शलजम का वनस्पतिक भाग यानी इसकी पत्तियां पशुओं के लिए पौष्टिक आहार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इस मौसम अगर आप भी करना चाहते हैं तो शलजम की खेती तो इससे जुड़ी कुछ जानकारियां होना आवश्यक है। आइए इस पोस्ट के माध्यम से शलजम की खेती पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।
शलजम की खेती का उपयुक्त समय
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मैदानी क्षेत्रों में इसकी खेती सितम्बर से अक्टूबर महीने में करनी चाहिए।
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पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी खेती के लिए जुलाई से अक्टूबर तक का महीना उपयुक्त है।
उपयुक्त मिट्टी एवं जलवायु
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इसकी खेती कई तरह की मिट्टी में सफलतापूर्वक की जा सकती है।
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अच्छी पैदावार के लिए जीवांशयुक्त उपजाऊ दोमट मिट्टी एवं रेतीली दोमट मिट्टी में खेती करें।
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ठंडे जलवायु में इसकी खेती करनी चाहिए।
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पौधों के विकास के लिए करीब 20 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान होना आवश्यक है।
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बीज की मात्रा एवं बीज उपचारित करने की विधि
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प्रति एकड़ भूमि में खेती करने के लिए 1.2 से 1.6 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
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बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 3 ग्राम बाविस्टिन या कैप्टान से उपचारित करें।
खेत तैयार करने की विधि
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शलजम एक जड़ वाली फसल है। जड़ों के बेहतर विकास के लिए मिट्टी का भुरभुरा होना आवश्यक है।
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खेत तैयार करते समय सबसे पहले मिट्टी पलटने वाली हल से 1 बार गहरी जुताई करें।
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इसके बाद 2 से 3 बार हल्की जुताई करें।
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बीज की बुवाई लाइन में करें।
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सभी लाइनों के बीच 30 से 40 सेंटीमीटर की दूरी रखें।
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पौधों से पौधों की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर रखें।
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बीज की बुवाई 2-3 सेंटीमीटर की गहराई पर करें।
सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण
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बुवाई के 8 से 10 दिनों बाद सिंचाई करें।
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इसके बाद हर 10 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।
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खरपतवार पर नियंत्रण के लिए खेत में निराई-गुड़ाई करें।
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शलजम की फसल में करीब 2 से 3 बार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए।
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शलजम की उन्नत किस्मों की जानकारी यहां से प्राप्त करें।
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