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सेम की खेती

Author : Lohit Baisla

सेम की खेती उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु आदि राज्यों में की जाती है। इसकी फलियों का उपयोग सब्जी के तौर पर किया जाता है। वहीं इसके पत्तों को पशुओं के चारे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसकी खेती के लिए मिट्टी, जलवायु, उर्वरक, सिंचाई आदि की जानकारियां यहां से प्राप्त करें।

बीज की मात्रा

  • प्रति एकड़ जमीन में खेती करने के लिए करीब 2.5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

मिट्टी एवं जलवायु

  • इसकी खेती दोमट मिट्टी के साथ चिकनी मिट्टी एवं रेतीली मिट्टी में भी की जा सकती है।

  • मिट्टी का पी.एच स्तर 5.3 से 6 होना चाहिए।

  • सेम की अच्छी पैदावार के लिए 15 से 22 डिग्री तापमान सबसे उपयुक्त है।

खेत की तैयारी

  • खेत की 1 बार मिट्टी पलटने वाली हल से जुताई करें।

  • इसके बाद 2-3 बार हल्की जुताई करें।

  • जुताई के बाद खेत में पाटा लगाएं। इससे खेत की मिट्टी समतल हो जाएगी।

  • प्रति एकड़ खेत में 8-10 टन सड़ी हुई गोबर की खाद एवं 8 किलोग्राम नीम की खली मिलाएं।

  • बुवाई से पहले प्रति एकड़ खेत में 10 किलोग्राम डीएपी और 30 किलोग्राम पोटाश मिलाएं।

  • बुवाई के 20-25 दिन बाद प्रति एकड़ खेत में 20 किलोग्राम यूरिया का छिड़काव करें।

  • लताओं में फूल एवं फलियां निकलने के समय खेत में 12 किलोग्राम नाइट्रोजन का छिड़काव करें।

  • बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम से उपचारित करें।

सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण

  • वर्षा के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।

  • ठंडी के मौसम में या वर्षा नहीं होने पर 12 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।

  • खेत में खरपतवार पर नियंत्रण करना आवश्यक है।

  • खरपतवार पर नियंत्रण के लिए कुछ समय के अंतराल पर 2-3 बार निराई-गुड़ाई करें।

तुड़ाई एवं पैदावार

  • फूल निकलने के 2 से 3 सप्ताह बाद फलियों की पहली तुड़ाई की जा सकती है।

  • फलियों की तुड़ाई में देर होने पर फलियां कठोर हो जाती हैं।

  • प्रति एकड़ खेत से 20 से 32 क्विंटल तक हरी फलियां प्राप्त होती हैं।

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10 September 2020

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