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करेला
विभा कुमारी
कृषि विशेषयज्ञ
3 year
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रस चूसक कीट से प्रभावित न हो करेले की फसल

रस चूसक कीट से प्रभावित न हो करेले की फसल

करेले में प्रचुर मात्रा में पोषक तत्व मौजूद होते हैं। जिस कारण इसका प्रयोग कई आयुर्वेदिक दवाओं में भी किया जाता है। इसके सेवन से पाचन क्रिया में सुधार होता है और मधुमेह, त्वचा रोग, कुष्ठ रोग, गठिया, जैसे कई अन्य रोगों में भी राहत मिलती है। इतने फायदों के कारण करेले के कड़वे स्वाद के बावजूद इसकी मांग बनी रहती है। करेला की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए इसे विभिन्न रस छूसक कीटों से बचाना बेहद जरूरी है। यहां से आप करेले की फसल को प्रभावित करने वाले विभिन्न रस चूसक कीटों पर नियंत्रण के तरीके जान सकते हैं।

  • माइट : आकार में छोटे यह कीट कोमल पत्तियों का रस चूसते हैं। जिससे पत्तियों पर सफेद रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। माइट्स का प्रकोप बढ़ने पर पौधों के विकास में बाधा आती है। इस कीट पर नियंत्रण के लिए 150 लीटर पानी में 50 मिलीलीटर देहात हॉक मिला कर छिड़काव करें।

  • अन्य रस चूसक कीट : इनमे मोयला, हरा तेल आदि कीट शामिल है। इस तरह के कीट पत्तियों का रस चूस कर फसल को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। परिणाम स्वरूप पत्तियां पीली हो कर सूखने लगती हैं। समय रहते इस कीट पर नियंत्रण नहीं किया गया तो पौधों का विकास रुक जाता है। इन कीटों पर जैविक विधि से नियंत्रण के लिए नीम के तेल का छिड़काव करें। इसके अलावा 15 लीटर पानी में 5 मिलीलीटर इमिडाक्लोप्रीड 17.8% एस.एल. मिला कर छिड़काव करने से भी इन कीटों पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है।

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