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राजमा
डॉ. प्रमोद मुरारी
कृषि विशेषयज्ञ
3 year
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राजमा की खेती

राजमा की खेती

राजमा के दानों का रंग और आकर दोनों ही किडनी की तरह होता है इसलिए अंग्रेजी में इसे किडनी बीन कहते हैं। इसका उपयोग सब्जी और दाल के तौर पर किया जाता है। इसके दानों में प्रोटीन , कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन आदि कई तरह के पोषक तत्व पाए जाते हैं। बाजार में अधिक मूल्य पर बिकने के कारण इसकी खेती नकदी फसल के रूप में की जाती है।

मिट्टी एवं जलवायु

  • इसकी खेती के लिए बलुई दोमट और बलुई चिकनी मिट्टी अच्छी होती है।

  • लवणीय एवं क्षारीय मिट्टी में इसकी खेती नहीं करनी चाहिए।

  • राजमा के पौधे ठंड और जल जमाव के प्रति संवेदनशील होते हैं।

  • तापमान 30 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक होने पर फूलों के झड़ने की समस्या होने लगती है।

  • अधिक ठंड में भी इसकी फूलों, फलियों और डालियों प्रतिकूल असर होता है।

खेत की तैयारी

  • मिट्टी पलटने वाली हल से 1 बार गहरी जुताई करें।

  • इसके बाद 2 से 3 बार हल्की जुताई करें।

  • जुताई के बाद खेत में पाटा लगा कर खेत को समतल बना लें।

  • आखिरी जुताई के समय प्रति एकड़ खेत में 2 से 2.8 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद मिलाएं।

खाद-उर्वरक एवं खरपतवार नियंत्रण

  • प्रति एकड़ खेत में 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 24 किलोग्राम फॉस्फेट, 8 किलोग्राम पोटाश और 8 किलोग्राम जिंक मिलाएं।

  • खड़ी फसल में 20 किलोग्राम नाइट्रोजन का छिड़काव करें।

  • निराई - गुड़ाई के माध्यम से खरपतवार पर आसानी से नियंत्रण कर सकते हैं।

  • बुवाई के तुरंत बाद प्रति एकड़ जमीन में 400 ग्राम पेन्डीमेथलीन को 240 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करने से खरपतवार पर नियंत्रण होता है।

सिंचाई एवं कटाई

  • हर 25 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।

  • खेत में जल जमाव न होने दें।

  • फसल को तैयार होने में 120 से 130 दिन का समय लगता है।

  • कटाई के बाद फसल को 3-4 दिनों तक धूप में सुखाएं।

  • जब नमी 9-10 प्रतिशत रहे तब दानों को अलग कर लें।

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