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कृषि विशेषयज्ञ
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प्याज: बदलते मौसम में फफूंद जनित रोगों से बरतें सावधानी

प्याज: बदलते मौसम में फफूंद जनित रोगों से बरतें सावधानी

एक कंद वाली फसल होने के कारण प्याज में अक्सर फफूंद जनित रोग लगने का खतरा अधिक होता है। इसके साथ ही लगातार बदलते मौसम जैसे कारक भी इन समस्याओं को कई गुना तक बढ़ा देने के पक्ष में ही कार्य करते हैं और फफूंद को तेजी से फैला कर फसल को पूरी तरह से खराब कर देते हैं। ऐसे में जरूरी है कि किसान इन रोगों की प्रारंभिक पहचान कर नियंत्रण के उपाय फसल में अपनाएं।

मृदुरोमिल आसिता एक फफूंद जनित रोग है, जो प्याज़ के उत्पादन पर बहुत बुरा असर डालता है। वातावरण में अधिक वर्षा एवं नमी के कारण रोग के विकास में बढ़ोतरी हो जाती है। परिणामस्वरूप पौधे का रोग ग्रस्त भाग सूख कर गिर जाता है। रोग फसल के उत्पादन में कमी का कारण बनता ही है, साथ ही प्याज में कंद के आकार को भी घटा देता है।

रोग के लक्षण

  • पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे पड़ जाते हैं और बाद में ये पीले धब्बे किनारों के साथ धूसर-भूरे हो जाते हैं।

  • पत्तियों के निचले हिस्से या उपरी सतह पर रोग की मौजूदगी के कारण धब्बे रोएंदार  दिखाई पड़ते हैं।

  • इस रोग से ग्रसित पौधे के भाग सूख जाते हैं और कंद का आकार छोटा हो जाता है।

रोग प्रबंधन

  • रोग-प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करें।

  • अत्याधिक नाइट्रोजन युक्त उर्वरक डालने से बचें।

  • फसल चक्रीकरण अपनाएं।

  • बीमारी  की रोकथाम के लिए मैन्कोजेब 75 डब्लूपी 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में  घोलकर छिड़काव करें।

  • प्याज  की पत्तियां चिकनी होने के कारण  उस पर दवा चिपकती नहीं है इसलिए दवा के बेहतर प्रभाव के लिए चिपचिपा पदार्थ ट्राइटोन या सेंडोविट की मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर घोल में मिलाकर छिड़काव करें।

  • दवाओं के छिड़काव के कम से कम दो सप्ताह बाद ही प्याज को खाने में प्रयोग करें।

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अपनी प्याज की फसल में किसी भी प्रकार की समस्या के निवारण के लिए कमेंट के माध्यम से अपने सवाल पूछें। या हमारे टोल फ्री नंबर 1800 1036 110 पर संपर्क कर कृषि विशेषज्ञों की मुफ्त सलाह पाएं। पोस्ट को लाइक एवं शेयर करना न भूलें।


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