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पर्माकल्चर खेती : जाने इस अनोखी तकनीक के फायदे
पर्माकल्चर खेती : जाने इस अनोखी तकनीक के फायदे
हमारे देश में कृषि क्षेत्र में हर दिन नए आविष्कार किए जा रहे हैं। हर दिन नई तकनीकें ईजाद की जा रहीं हैं। इनमें पर्माकल्चर कृषि तकनीक भी शामिल है। इस तकनीक में हम प्रकृति में मौजूद साधनों का इस्तेमाल कर के खेती की जाती है। हम में से कई व्यक्ति इस तकनीक से अब तक अनजान हैं। आइए इस पोस्ट के माध्यम से हम पर्माकल्चर कृषि तकनीक पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।
पर्माकल्चर खेती क्या है?
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पर्माकल्चर शब्द परमानेंट एग्रीकल्चर (सतत कृषि) को जोड़ कर बनाया गया है। यह खेती और बागवानी की एक अनोखी विधि है। इस विधि में वृक्षों की खेती पर अधिक ध्यान दिया जाता है।
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पर्माकल्चर कृषि प्रकृति में मौजूद साधनों के द्वारा की जाती है। इस विधि में कम जगह में भी अधिक पौधों को लगाया जा सकता है।
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इसके साथ ही इस तकनीक में पानी की बचत के साथ खेती की जाती है। पानी की बचत के लिए वर्षा के जल का भरपूर उपयोग किया जाता है।
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इस विधि में मिट्टी ढक कर रखने पर विशेष ध्यान दिया जाता है। मिट्टी को लकड़ी के छोटे टुकड़ों, पत्तियों, घास, पुआल, आदि से ढक कर रखा जाता है। इससे खरपतवार की समस्या भी कम होती है और सिंचाई के समय पानी की भी बचत होती है।
पर्माकल्चर कृषि तकनीक से किन फसलों की खेती की जाती है?
पर्माकल्चर कृषि तकनीक से हम दलहन, तिलहन के साथ कई अन्य अनाजों की खेती कर सकते हैं। इसके साथ ही इस विधि से हम सब्जियों एवं फलों की खेती भी कर सकते हैं।
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अनाज : धान, गेहूं, बाजरा, मक्का, ज्वार, जौ, मसूर, मूंग, अरहर, उड़द, चना, लोबिया, राजमा, मूंगफली, तिल, सरसों, कपास, जैसे अनाजों की खेती की जाती है।
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सब्जियां : आलू, प्याज, भिंडी, गोभी, टमाटर, मिर्च, बैंगन, लौकी, करेला, अदरक, धनिया, आदि सब्जियों की खेती कर सकते हैं।
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फल : आम, लीची, आड़ू, पपीता, सीताफल, अमरुद, केला, आदि फलों की भी खेती सफलतापूर्वक की जाती है।
पर्माकल्चर खेती के फायदे
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इस तकनीक में हानिकारक उर्वरक, कीटनाशक, फफूंदनाशक, आदि का प्रकोग नहीं किया जाता है।
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पौधों के विकास के लिए गोबर की खाद का इस्तेमाल किया जाता है।
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मिट्टी को ढके रखने से मिट्टी में अधिक समय तक नमी बनी रहती है। जिससे अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।
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भूमि अधिक उपजाऊ बनती है।
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कम जगह में कई फसलों को लगा कर अधिक पैदावार प्राप्त किया जा सकता है।
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भूमि की जुताई नहीं करने के कारण लागत में कमी आती है।
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जुताई, सिंचाई, खरपतवार नाशक, आदि पर होने वाले खर्च में कमी आती है।
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