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पपीता : नर्सरी में आर्द्रगलन रोग
पपीता : नर्सरी में आर्द्रगलन रोग
पपीता की खेती करने वाले किसानों को नर्सरी में होने वाले रोगों की जानकारी होना बेहद जरूरी है। नर्सरी में होने वाले रोगों में से एक है आर्द्रगलन रोग। इस रोग के कारण छोटे पौधे नर्सरी में ही नष्ट हो जाते हैं। छोटे पौधों को इस रोग से बचाने के के लिए रोग के लक्षण एवं बचाव के उपाय यहां से देखें।
रोग का लक्षण
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इस रोग के होने पर छोटे पौधों के तने काले होने लगते हैं।
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कुछ समय बाद जमीन से सटे तने सड़ने लगते हैं।
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रोग बढ़ने पर पौधे मुरझा कर गिर जाते हैं।
नियंत्रण के तरीके
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नर्सरी में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।
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बुवाई से पहले नर्सरी की मिट्टी को उपचारित करने से इस रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है।
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नर्सरी की मिट्टी को फारमेल्डिहाइड के 2.5 प्रतिशत घोल से उपचारित करने के बाद 48 घंटों तक पॉलिथीन से ढक दें।
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नर्सरी तैयार करते समय जमीन की सतह से करीब 15 से 20 सेंटीमीटर की ऊंचाई पर क्यारियां तैयार करें। इससे जल जमाव की समस्या नहीं होगी।
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बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम कार्बेन्डाज़िम या मैंकोज़ेब से उपचारित करें।
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इसके अलावा प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम रिडोमिल से भी उपचारित किया जा सकता है।
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नर्सरी में छोटे पौधों को इस रोग से बचाने के लिए प्रति लीटर पानी में 2 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या मैंकोज़ेब मिला कर छिड़काव करें।
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आवश्यकता के अनुसार 1 सप्ताह के अंतराल पर 3 से 4 बार छिड़काव किया जा सकता है।
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हमें उम्मीद है इस पोस्ट में बताई गई दवाएं आर्द्रगलन रोग पर नियंत्रण के लिए कारगर साबित होगी। अगर आपको यह जानकारी पसंद आई है तो इस पोस्ट को लाइक करें एवं अन्य किसानों के साथ साझा भी करें। जिससे अधिक से अधिक किसान पपीता के छोटे पौधों को इस हानिकारक रोग से बचा सकें। पपीता की खेती से जुड़े अपने सवाल हमसे कमेंट के माध्यम से पूछें।
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