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विभा कुमारी
कृषि विशेषयज्ञ
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फसलों को रोगों से बचाने के लिए जैविक कवकनाशी ट्राइकोडर्मा, जानें उपयोग की विधि

फसलों को रोगों से बचाने के लिए जैविक कवकनाशी ट्राइकोडर्मा, जानें उपयोग की विधि

गांव देहात में आपने यह कहावत तो सुनी होगी जहर को जहर मरता है या लोहे को लोहा काटता है। ठीक उसी प्रकार ट्राइकोडर्मा एक तरह का ऐसा  फफूंद यानी कवक है जो फसलों एवं पौधों की हानिकारक फफूंद से रक्षा करता है। आपको यह जानकारी भी होना जरुरी है मिट्टी में कई तरह के फफूंद होते हैं। कुछ फफूंद पौधों एवं फसलों के लिए हानिकारक होते हैं, तो वहीं कुछ ऐसे भी फफूंद होते हैं जो फसलों के लिए बहुत लाभदायक हैं। इन्हीं लाभदायक फफूंदों में ट्राइकोडर्मा भी शामिल है।

लेकिन कुछ मृदा जनित विभिन्न रोगों के कारण फसलों में जड़ गलन रोग, तना गलन रोग, उकठा रोग, पर्ण चित्ती रोग, आर्द्रगलन रोग, प्रकंद विगलन, अंगमारी रोग, झुलसा रोग, आदि रोगों से बहुत नुकसान होता है। मुख्य रूप से फ्यूजेरियम, पिथियम, फाइटोफ्थोरा, राइजोक्टोनिया, स्क्लैरोशियम, स्कलैरोटिनिया, आदि फफूंदों के कारण 30 से 80 प्रतिशत तक फसल नष्ट हो सकती है। फसलों को इन फफूंदों से जनित रोगों से बचाने के लिए जैविक कवकनाशी के तौर पर ट्राइकोडर्मा का प्रयोग किया जाता है।

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि ट्राइकोडर्मा भी कई प्रकार के होते हैं। जिनमे ट्राइकोडर्मा विरिडी एवं ट्राइकोडर्मा हर्जियानम सबसे ज्यादा प्रचलित हैं। यह फसलों के लिए हानिकारक फफूंदों को नष्ट कर के विभिन्न रोगों पर नियंत्रण में सहायक हैं। लेकिन रासायनिक कवकनाशी के कुछ दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। हालाँकि ट्राइकोडर्मा के प्रयोग से फसलों पर किसी तरह का नकारात्मक प्रभाव नहीं होता है। फिर भी इसके नकारात्मक दुष्प्रभावों से बचने के लिए आइये जानते है इसकी उपयोग विधि के बारे में।

ट्राइकोडर्मा प्रयोग की विधि :

ट्राइकोडर्मा को विभिन्न तरीकों से उपयोग किया जाता है। इससे बीज उपचार, मिट्टी का उपचार, जड़ के उपचार के साथ फसलों में छिड़काव भी कर सकते हैं।

  • ट्राइकोडर्मा से बीज उपचारित करने की विधि : बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज में 2 से 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर को समान रूप से मिलाएं। इससे बीज की बुवाई के बाद ट्राइकोडर्मा फफूंद भी मिट्टी में बढ़ने लगता है और हानिकारक फफूंदों को नष्ट कर के फसलों को रोगों से बचाता है। यदि बीज को कीटनाशक से भी उपचारित करना है तो पहले कीटनाशक से उपचारित करें। उसके बाद इसका प्रयोग करें।

  • ट्राइकोडर्मा से मिट्टी उपचारित करने की विधि : मिट्टी को उपचारित करने के लिए खेत तैयार करते समय 25 किलोग्राम गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद या वर्मी कम्पोस्ट में 1 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर मिला कर खेत में समान रूप से मिलाएं। इस विधि से नर्सरी की मिट्टी भी उपचारित की जा सकती है। (यह मात्रा प्रति एकड़ खेत के अनुसार दी गई है।)

  • ट्राइकोडर्मा से जड़ उपचारित करने की विधि : यदि बीज उपचारित नहीं किया गया है तो मुख्य खेत में पौधों की रोपाई से पहले 15 लीटर पानी में 250 ग्राम ट्राइकोडर्मा मिला कर घोल तैयार करें। इस घोल में पौधों की जड़ों को करीब 30 मिनट तक डूबो कर रखें। इसके बाद पौधों की रोपाई करें।

  • फसलों पर ट्राइकोडर्मा छिड़काव की विधि : फसलों में मृदा जनित या फफूंद जनित रोगों के लक्षण नजर आने पर प्रति लीटर पानी में 2 से 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा मिला कर छिड़काव करें।

ट्राइकोडर्मा उपयोग करते समय सावधानियां

  • बीज को उपचारित करने के बाद किसी छांव वाली जगह रखें। ट्राइकोडर्मा से उपचारित बीज को धूप में न रखें। तेज धूप से इसमें मौजूद फफूंद नष्ट हो सकते हैं।

  • फफूंद के विकास के लिए नमी आवश्यक है। इसलिए सूखी मिट्टी में इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए।

  • इसके प्रयोग के बाद 4-5 दिनों तक रासायनिक कवकनाशी का प्रयोग न करें।

  • खड़ी फसल में इसका छिड़काव शाम के समय करना चाहिए। आप सुबह धूप निकलने से पहले भी छिड़काव कर सकते हैं।

  • गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद या वर्मी कम्पोस्ट में मिलाने के बाद इसे अधिक समय तक न रखें।

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हमें उम्मीद है यह जानकारी आपके लिए महत्वपूर्ण साबित होगी। अगर आपको यह जानकारी पसंद आई है तो इस पोस्ट को लाइक करें एवं अन्य किसानों के साथ साझा भी करें ताकि अधिक से अधिक किसान इस जानकारी का फायदा ले सकें । ट्राइकोडर्मा से जुड़े सवाल आप हमसे कमेंट के माध्यम से पूछ सकते हैं।

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