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मूंगफली
विभा कुमारी
कृषि विशेषयज्ञ
3 year
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मूंगफली की फसल में टिक्का रोग

मूंगफली की फसल में टिक्का रोग

मूंगफली की फसल में लगने वाले टिक्का रोग को पर्ण चित्ती रोग के नाम से भी जाना जाता है। फफूंदी द्वारा फैलने वाले इस रोग से ज्यादातर 1 या 2 महीने के छोटे पौधे प्रभावित होते हैं। मूंगफली की फसल को इस रोग से सर्वाधिक नुकसान होता है। समय रहते अगर इससे निजात नहीं पाया गया तो फसल की पैदावार में 10 से 50 प्रतिशत तक कमी आ सकती है।

रोग के लक्षण

  • इस रोग का असर सबसे पहले पौधों की पत्तियों पर दिखाई देता है।

  • रोग से प्रभावित पत्तियों पर छोटे-छोटे धब्बे बनने लगते हैं।

  • आकार में गोल यह धब्बे गहरे कत्थई रंग के होते हैं।

  • धब्बों के किनारे पीले रंग की धारियां बनी होती हैं।

  • रोग बढ़ने पर पत्तियां पीली होकर झड़ने लगती हैं।

बचाव के उपाय

  • बुवाई के लिए रोग रहित स्वस्थ बीजों का चयन करें।

  • बुवाई से पूर्व प्रति किलोग्राम बीज को 3 ग्राम थीरम 75 प्रतिशत या मैंकोज़ेब 75 प्रतिशत नामक फफूंदनाशी दवा से उपचारित करें।

  • हो सके तो रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें।

  • जब पत्ते गीलें हो तो खेत में कार्य करने से बचें। संक्रमित पौधों को खेत से बाहर निकाल कर नष्ट कर दें।

  • खेत में खरपतवार को नियंत्रित रखें। साथ ही फसल चक्र अपनाएं।

  • बुवाई के 40 दिन बाद 15 दिन के अंतराल पर 200 लीटर पानी में 500 ग्राम कार्बेन्डाज़िम 50 प्रतिशत (बाविस्टीन ) मिलाकर 2-3 छिड़काव कर सकते हैं।

  • रोग के लक्षण दिखाई देने पर प्रति एकड़ खेत में 250 लीटर पानी में 800 ग्राम मैंकोज़ेब 75 प्रतिशत (डाइथेन एम 45) या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (ब्लू- कॉपर / ब्लाइटॉक्स) 700 ग्राम 250 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

  • आवश्यकता होने पर 15 दिनों के अंतराल पर 2-3 बार छिड़काव कर सकते हैं।

यदि आपको यह जानकारी महत्वपूर्ण लगी है तो हमारे इस पोस्ट को लाइक करें साथ ही अन्य किसान मित्रों के साथ साझा भी करें। जिससे अधिक से अधिक किसान इस रोग से निजात पा सकें। अगर आपके मन में इससे जुड़ा कोई सवाल है तो आप कमेंट के माध्यम से अपने सवाल पूछ सकते हैं।

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