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मूंग
विभा कुमारी
कृषि विशेषयज्ञ
2 year
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मूंग की फसल को विभिन्न रोगों से बचाने के सटीक उपाय

मूंग की फसल को विभिन्न रोगों से बचाने के सटीक उपाय

मूंग की खेती खरीफ, रबी और जायद सभी मौसम में की जा सकती है। इसकी बेहतर पैदावार प्राप्त करने के लिए पौधों को कई रोगों से बचाना आवश्यक है। अगर आप भी कर रहे हैं मूंग की खेती तो पौधों को सरकोरस्पोरा पत्र बुंदकी रोग, पीला चितेरी रोग, लीफ कर्ल रोग, आदि से बचाने के लिए इन रोगों के लक्षण एवं नियंत्रण की जानकारी होना आवश्यक है। आइए मूंग की फसल में होने वाले विभिन्न रोगों की जानकारी पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।

  • सरकोरस्पोरा पत्र बुंदकी रोग : इस रोग के लक्षण सबसे पहले पौधों की पुरानी पत्तियों पर नजर आते हैं। प्रभावित पौधों की पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। धब्बों के किनारे भूरे लाल रंग के होते हैं। रोग का प्रकोप बढ़ने पर पत्तियां झड़ने लगती हैं और दाने बदरंग हो जाते हैं। इस रोग से बचने के लिए बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 5 ग्राम थीरम से उपचारित करें। कड़ी फसल में रोग के लक्षण नजर आने पर 1% कार्बेंडाज़िम से छिड़काव करें। आवश्यकता होने पर 15 दिनों के अंतराल पर दोबारा छिड़काव करें।

  • पीला चितेरी रोग : यह एक विषाणु जनित रोग है। इस रोग से प्रभावित पत्तियों पर अनियमित आकार के पीले एवं हरे रंग के धब्बे पड़ने लगते हैं। कुछ समय बाद पूरी पत्तियां पीली हो जाती हैं। पौधों में फूल एवं फलियां देर से आती हैं। इस रोग से बचने के लिए प्रतिरोधी किस्में जैसे एलजीपी 407, एमएल 267, का चयन करें। इसके अलावा इस रोग के लक्षण नजर आने पर प्रति हेक्टेयर भूमि में 500 लीटर पानी में 0.3% डायमेथोएट मिला कर छिड़काव करें।

  • लीफ कर्ल रोग : किसी भी अवस्था में पौधे इस रोग से प्रभावित हो सकते हैं। इस रोग को पर्ण संकुचन रोग के नाम से भी जाना जाता है। प्रभावित पत्तियां नीचे की तरफ सिकुड़ने लगती हैं। कुछ समय बाद पत्तियां कमजोर हो जाती हैं। जिससे हल्के झटके लगने पर भी डंठल सहित नीचे गिरने लगती हैं। इस रोग से बचने के लिए प्रति किलोग्राम बीज को 5 ग्राम इमीडाक्लोप्रिड से उपचारित करें।

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