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मोरिंगा की बुवाई
मोरिंगा की बुवाई
मोरिंगा को आम भाषा में सहजन भी कहते हैं। विटामिन, मिनरल, आयरन आदि कई पोषक तत्वों से भरपूर मोरिंगा स्वस्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है। बात करें उपयोगिता की तो विभिन्न क्षेत्रों में इसकी फलियों के साथ पत्तियां एवं फूलों का भी सेवन किया जाता है। यह पर्यावरण की दृष्टि से भी बहुत फायदेमंद है। इसके बीज का प्रयोग बायो फ्यूल बनाने में किया जाता है। इसके अलावा पेड़ की छाल, पत्तियां, बीज, गोंद एवं जड़ों से आयुर्वेदिक दवाएं तैयार की जाती हैं। इसकी खेती किसानों के लिए मुनाफे का सौदा साबित हो सकती है। अगर आप करना चाहते हैं मोरिंगा की खेती तो इसकी बुवाई की विधि एवं कुछ अन्य जानकारियां यहां से देखें।
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इसकी खेती बीज की रोपाई के साथ शाखाओं को लगा कर भी की जाती है।
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अच्छे फलन के लिए बीज की रोपाई के द्वारा इसकी खेती करनी चाहिए। इससे वर्ष में 2 बार फल भी प्राप्त किए जा सकते हैं।
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इसके लिए सबसे पहले सबसे पहले खेत की अच्छी तरह जुताई करें।
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जुताई करने के बाद खेत में 50 सेंटीमीटर गहरा और 50 सेंटीमीटर चौड़ा गड्ढा तैयार करें।
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सभी गड्ढों के बीच करीब 3 मीटर की दूरी रखें।
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इन गड्ढों को कुछ दिनों तक खुला रहने दें। इससे खेत में पहले से मौजूद खरपतवार एवं हानिकारक कीट नष्ट हो जाएंगे।
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सभी गड्ढों में कम्पोस्ट खाद या गोबर की खाद को मिट्टी में बराबर मात्रा में मिला कर भरें।
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इसके बाद सभी गड्ढों में बीज की बुवाई कर के हल्की सिंचाई करें।
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बुवाई के 10 से 12 दिनों के बाद बीज अंकुरित होने लगते हैं।
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आप चाहें तो पौधों को नर्सरी में तैयार करने के बाद भी रोपाई कर सकते हैं।
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यदि पौधों को नर्सरी में तैयार कर रहे हैं तो लगभग 1 माह में पौधे मुख्य खेत में रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं।
अच्छी फसल के लिए इन बातों का भी रखें ध्यान
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पौधे जब 75 सेंटीमीटर के हो जाएं तब पौधों के ऊपरी भागों की खुटाई करें। इससे अधिक मात्रा में शाखाएं निकलेंगी।
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मुख्य खेत में पौधों की रोपाई के 3 महीने बाद प्रति पौधे में 100 ग्राम यूरिया, 100 ग्राम फॉस्फेट एवं 50 ग्राम पोटाश दें।
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पौधों की रोपाई के 6 महीने बाद प्रति पौधे में 100 ग्राम यूरिया का छिड़काव करें।
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अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए फलियों को तुड़ाई के बाद जमीन की सतह से 1 मीटर की ऊंचाई से वृक्षों की कटाई करें।
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