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मक्का : खरपतवार प्रबंधन
Author : Dr. Pramod Murari

खरपतवार की अधिकता से मक्का के उत्पादन में 30 से 40 प्रतिशत तक कमी आ सकती है। मक्के की फसल में मुख्य रूप से चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार एवं सकरी पत्ती वाले खरपतवार पाए जाते हैं। देश के विभिन्न क्षेत्रों में मक्के की फसल में सावा, दूब, नरकुल, मोथा, वाइपर घास, चौलाई, जंगली जूट, मकोई, कुंदा घास, हजारदाना, आदि कई खरपतवार होते हैं। इन पर नियंत्रण के तरीके यहां से देखें।
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खरपतवार पर नियंत्रण के लिए कुछ समय के अंतराल पर खेत में निराई-गुड़ाई अवश्य करें।
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खेत में कम से कम 2 से 3 बार निराई-गुड़ाई करनी चाहिए।
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4-5 सेंटीमीटर से अधिक गहराई में निराई-गुड़ाई न करें। इससे अधिक गहराई में मक्के की जड़ों को नुकसान पहुंच सकता है।
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यदि हल्की मिट्टी में मक्के की खेती की गई है तो प्रति एकड़ भूमि में 500 ग्राम एट्राजीन का छिड़काव करने से विभिन्न खरपतवारों पर नियंत्रण किया जा सकता है।
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वहीं अगर भारी मिट्टी में खेती की गई है तो खरपतवार पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ जमीन में 800 ग्राम एट्राजीन को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
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खरपतवार नाशक दवाओं के प्रयोग के समय मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में नमी होना आवश्यक है।
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बुवाई के 48 घंटों के अंदर 400 लीटर पानी में 2 से 2.5 लीटर एलाक्लोर 50 प्रतिशत ई.सी मिलाकर छिड़काव करने से खरपतवार पर नियंत्रण होता है।
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खरपतवार पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ भूमि में बुवाई के 30 से 60 के बाद 115 मिलीलीटर लॉडिस (टेम्बोट्रेयॉन 42% एस.सी) का छिड़काव करें।
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यदि आपको यह जानकारी महत्वपूर्ण लगी है तो इस पोस्ट को लाइक करें एवं इसे अन्य किसानों के साथ साझा भी करें। जिससे सभी किसान मक्के की फसल में होने वाले विभिन्न खरपतवारों पर नियंत्रण प्राप्त कर सकें। मक्के की खेती से जुड़े अपने सवाल हमसे कमेंट के माध्यम से पूछें।
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27 November 2020
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