खेत में लगातार रासायनिक पदार्थों और कीटनाशकों के प्रयोग के कारण खेत की मिट्टी की उर्वरक क्षमता कम हो जाती है। कई वर्षों के अनुभव के बाद भी किसानों के लिए मिट्टी की उपजाऊ क्षमता का अंदाजा लगाना कठिन होता है। ऐसी स्थिति में फसलों की पैदावार पर प्रभाव पड़ता है। उच्च गुणवत्ता की फसल और अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए मिट्टी ने मौजूद तत्वों की जानकारी होना बहुत जरूरी है। मृदा परीक्षण यानि मिट्टी की जांच करा कर किसान इसकी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। मिट्टी की जांच के फायदे , इसकी प्रक्रिया, जांच के लिए सावधानियों की जानकारी यहां से प्राप्त करें।
मिट्टी जांच क्यों जरूरी है?
मिट्टी में कई पोषक तत्व होते हैं। पौधों को अपने जीवन चक्र में कई पोषक तत्वों की आवश्यकता है।
मुख्य तत्वों जैसे कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नत्रजन, फास्फोरस, पोठाश, कैल्सिशयम, मैग्नीशियम और सूक्ष्म तत्वों जैसे जस्ता , मैग्नीज, तांबा, लौह, बोरोन, मोलिबडेनम और क्लोरीन की संतुलित मात्रा से अच्छी पैदावार प्राप्त होती है।
मिट्टी में इन तत्वों की कमी के कारण मिट्टी की उर्वरक शक्ति कम होने लगती है।
मिट्टी जांच के फायदे
मिट्टी की जांच करा कर किसान खेत की मिट्टी में मौजूद नाईट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश आदि तत्वों के साथ लवणों की मात्रा की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
इससे मिट्टी के पी.एच स्तर का भी पता चलता है।
मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों के अनुसार फसलों का चयन करने से अधिक पैदावार होती है।
मिट्टी में जिन पोषक तत्वों की कमी है उन्हें पूरा कर के हम मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बढ़ा सकते हैं।
मिट्टी जांच कब करानी चाहिए?
फसल की बुवाई या रोपाई से एक महीना पहले खेत की मिट्टी की जांच कराएं।
अगर आप सघन पद्धति से खेती करते हैं तो हर वर्ष मिट्टी की जांच करवानी चाहिए।
यदि खेत में वर्ष में एक फसल की खेती की जाती है टी हर 2 या 3 साल में मिट्टी की जांच करा लें।
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