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मेंथा में पत्ती छेदक कीट से बचाव के उपाय
मेंथा में पत्ती छेदक कीट से बचाव के उपाय
अन्य फसलों की तुलना में मेंथा की फसल में कीट एवं रोगों का प्रकोप कम होता है। इस कारण कई बार किसान मेंथा की फसल में लापरवाही कर बैठते हैं। किसानों की जरा सी लापरवाही मेंथा की फसल को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है। ऐसे में मेंथा की अच्छी पैदावार के लिए फसलों की नियमित रूप से देख-रेख करना एवं फसल को पत्ती छेदक कीटों से बचाना आवश्यक है। आइए मेंथा की फसल को क्षति पहुंचाने वाले पत्ती छेदक कीट के प्रकोप का लक्षण एवं नियंत्रण के तरीकों पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।
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पत्ती छेदक कीट : यह कीट मेंथा की पत्तियों के हरे पदार्थ को खा कर पत्तियों को खोखला कर देते हैं। इससे पत्तियां कमजोर हो कर सूखने लगती हैं। इस कीट पर नियंत्रण के लिए 150 लीटर पानी में 50 मिलीलीटर देहात कटर मिलाकर छिड़काव करें।
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बालदार सूंडी : यह कीट पत्तियों की निचली सतह पर रहते हैं। यह पत्तियों को खा कर फसल को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। इनके प्रकोप से पौधों में तेल की मात्रा कम हो जाती है। झुंड में होने के कारण यह कम समय में फसल को अधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं। इस कीट पर नियंत्रण के लिए यदि संभव हो तो सूंडियों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें। बालदार सूंडी को आकर्षित करने के लिए खेत में प्रकाश प्रपंच का प्रयोग करें।
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पत्ती लपेटक कीट : यह किट पत्तियों को लपेटते हुए खाते हैं। फलस्वरूप पत्तियां मुड़ी हुई एवं पत्तियों में छेद नजर आते हैं। जैविक विधि से नियंत्रण के लिए नीम युक्त कीटनाशक जैसे इकोनीम का प्रयोग करें। नीम के तेल का छिड़काव भी इस कीट पर नियंत्रण करने में कारगर साबित हो सकता है।
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