सल्फर को गंधक के नाम से भी जाना जाता है। नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, आदि उर्वरकों की तरह सल्फर भी फसलों के लिए बहुत जरूरी है। सही समय पर उचित मात्रा में सल्फर का प्रयोग नहीं किया गया तो मेंथा की उपज एवं गुणवत्ता पर इसका विपरीत असर होता है। अगर आप कर रहे हैं मेंथा की खेती तो यहां से पौधों में सल्फर की कमी के लक्षण, सल्फर प्रयोग करने के फायदों के साथ सल्फर की पूर्ति के तरीके भी जान सकते हैं।
मेंथा की फसल में सल्फर की कमी के लक्षण
मेंथा की फसल में सल्फर की कमी के कारण पौधों की पत्तियां पीली होने लगती हैं।
नाइट्रोजन की कमी के कारण भी पत्तियां पीली होने लगती हैं। लेकिन यदि पौधों की नई पत्तियां पीली हो या ऊपरी पत्तियां पीली हो तो समझें पौधों में सल्फर की कमी है।
मेंथा की फसल में सल्फर प्रयोग करने के फायदे
सल्फर के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरक क्षमता बढ़ती है।
इसका प्रयोग फफूंदनाशक तौर पर भी किया जाता है।
सफेद मक्खी का प्रकोप होने पर सल्फर का प्रयोग करने से कीट पर आसानी से नियंत्रण किया जा सकता है।
सल्फर मेंथा की पत्तियों में पर्णहरित के निर्माण में सहायक है।
मेंथा की फसल में कैसे करें सल्फर की पूर्ति?
मेंथा की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए प्रति एकड़ भूमि में 48 से 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 से 24 किलोग्राम फास्फोरस, 16 किलोग्राम पोटाश के साथ 8 किलोग्राम सल्फर का प्रयोग करें।
इसके अलावा प्रति एकड़ जमीन में 100 किलोग्राम जिप्सम का प्रयोग करने से भी सल्फर की पूर्ति की जा सकती है।
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