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मेंथा : फसल की उचित बढ़वार के लिए उर्वरक प्रबंधन
मेंथा : फसल की उचित बढ़वार के लिए उर्वरक प्रबंधन
मेंथा को पुदीना एवं मिंट के नाम से भी जाना जाता है। इसके पौधों में कीटों के प्रकोप का खतरा कम होता है। इसके साथ ही जल जमाव जैसी स्थिति को भी यह पौधे आसानी से सहन कर सकते हैं। यह एक बहुउपयोगी फसल है। इसकी ताजी पत्तियों के सेवन के अलावा इससे तेल भी प्राप्त किया जाता है। जिसकी खेती से किसान अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। लेकिन कई बार किसानों को मेंथा की फसल की बढ़वार में कमी देखने को मिलती है। जिसके मुख्य कारण खरपतवारों की अधिकता, पानी की कमी और मिट्टी में पोषण की कमी हो सकते हैं। हम कुछ बातों का ध्यान रख कर और बेहतर उर्वरक प्रबंधन के द्वारा मेंथा की बेहतर पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए पोस्ट को पूरा पढ़ें।
मेंथा की बेहतर बढ़वार के लिए करें यह कार्य
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खेती के लिए गहरी और दोमट मिट्टी का चुनाव करें।
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उचित जल निकास और वायु संचार की व्यवस्था रखें।
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खेत की गहरी जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बनाएं।
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बुवाई जनवरी से फरवरी माह में करें।
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खेत को खरपतवार मुक्त रखने के लिए 3 से 4 बार निराई गुड़ाई करें।
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मिट्टी का जांच करवाएं और सही मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करें।
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बुवाई के पहले जड़ों को शोधित अवश्य करें
उर्वरक प्रबंधन
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खेत की तैयारी के समय प्रति एकड़ खेत में 80-120 क्विंटल रूड़ी की खाद डाल कर अच्छी तरह मिलाएं।
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प्रति एकड़ खेत में नाइट्रोजन 58 किलोग्राम (यूरिया 130 किलोग्राम), फासफोरस 32-40 किलोग्राम (सिंगल सुपर फासफेट 80-100 किलोग्राम), पोटाशियम 20 किलोग्राम (म्यूरेट ऑफ पोटाश 33 किलोग्राम) का प्रयोग करें।
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10-10 किलोग्राम नाइट्रोजन रोपाई के 20 से 25 दिन बाद, फसल की पहली कटाई के बाद और दूसरी कटाई के बाद खेत में मिलाएं।
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पौधों में तेल की मात्रा बढ़ाने के लिए डी.ए.पी. खाद के साथ 80 से 100 किलोग्राम. जिप्सम प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करें।
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