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मेंथा : जड़ गलन रोग की रोकथाम के सटीक उपाय
मेंथा : जड़ गलन रोग की रोकथाम के सटीक उपाय
मेंथा की फसल को सामान्य रूप से किचन गार्डनिंग के तौर पर उगाते हैं। इसे पुदीना के नाम से भी जाना जाता है। इसका इस्तेमाल दंत मंजन, साबुन, दवाएं एवं अन्य बहुत से खाद्य पदार्थों में किया जाता है। पुदीना के रस का सेवन गर्मी में बहुत ही लाभकारी होता है। कई बार मेंथा की फसल में जड़ गलन रोग का प्रकोप देखने को मिलता है। अगर समय रहते इस पर नियंत्रण न किया जाए तो फसल की पैदावार पर असर पड़ता है। आज इस आर्टिकल के माध्यम से हम किसानों को इस रोग के कारण, लक्षण एवं रोकथाम के उपाय बताएंगे। जिनको अपनाकर किसान फसल से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। जानने के लिए पढ़िए यह आर्टिकल।
मेंथा की फसल में जड़ गलन रोग के कारण
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यह एक मिट्टी जनित रोग है।
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मिट्टी में पहले से मौजूद कीटाणु एवं फफूंद इस रोग के होने के मुख्य कारण हैं।
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फसल में अधिक पानी देने या पानी के भराव से भी यह रोग फैलता है।
जड़ गलन रोग के लक्षण
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इस रोग का प्रकोप फसल की प्रारम्भिक अवस्था में अधिक देखने को मिलता है।
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इस रोग के कारण पौधों की जड़ें काली पड़ जाती हैं।
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जड़ों पर गुलाबी रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं।
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इस रोग से फसल की पत्तियां पीली होने लगती हैं।
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कुछ समय बाद पौधा सड़ जाता है।
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अधिक प्रकोप होने पर पौधा मर जाता है।
रोकथाम के उपाय
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प्रभावित पौधे को उखाड कर नष्ट कर दें।
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उचित फसल चक्र अपनाएं।
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फसल में अधिक मात्रा में पानी देने से बचें।
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ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें, जिससे मिट्टी जनित कीटाणु मर जाएं।
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बुवाई से पहले बीज को अच्छी तरह से उपचारित करें।
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बुवाई के समय नीम की खली की 80 किलोग्राम मात्रा का एक एकड़ खेत में प्रयोग करें।
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रोग के लक्षण दिखने पर पौधों की जड़ों में कार्बेंडाजिम की उचित मात्रा का छिडकाव करें।
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ट्राइकोडर्मा विरडी की 2 किलोग्राम मात्रा को 100 किलोग्राम गोबर खाद के साथ प्रयोग करें।
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