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कल्पना
कृषि विशेषयज्ञ
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मछली पालन : मछलियों में होने वाले रोग, लक्षण एवं उपचार

मछली पालन : मछलियों में होने वाले रोग, लक्षण एवं उपचार

मछलियों की खपत लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में किसानों की आय बढ़ाने के लिए मछली पालन एक अच्छा व्यवसाय बन कर उभर रहा है। इसके अलावा कई क्षेत्रों में यह आजीविका का मुख्य साधन भी है। लेकिन क्या आप जानते हैं अन्य पशुओं की तरह मछलियों में भी कई तरह के रोग होते हैं। विभिन्न रोगों से प्रभावित मछलियों का सही समय पर उपचार नहीं किया गया तो मछलियों की मृत्यु भी हो सकती है। जिससे किसानों का भारी नुकसान होता है। आइए मछलियों में होने वाले रोगों पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।

मछलियों में होने वाले कुछ प्रमुख रोग

  • लाल चकता रोग : इस रोग को ई.यू.एस. रोग एवं लाल रोग महामारी के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग के होने पर मछलियों के शरीर पर लाल रंग के चकते उभरने लगते हैं। मछलियों के सर एवं पूंछ वाले हिस्सों में इस रोग का प्रकोप अधिक होता है। रोग बढ़ने पर यह चकते घाव में बदलने लगते हैं। समय रहते यदि इस रोग पर नियंत्रण नहीं किया गया तो मछलियां मरने लगती हैं। प्रति एकड़ तालाब में 240 किलोग्राम चूना को 3 भागों में बांट कर 1 सप्ताह के अंतराल पर प्रयोग करें। ब्लीचिंग पाउडर का इस्तेमाल करने से भी इस रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है। इसके अलावा मछलियों के प्रति किलोग्राम आहार में 100 मिलीग्राम टेरामाइसीन मिला कर दें। प्रति एकड़ तालाब में 40 किलोग्राम छूना एवं 4 किलोग्राम हल्दी पाउडर का 5 दिनों के अंतराल पर 3 बार प्रयोग करें।

  • सफेद धब्बा रोग : इसे व्हाइट स्पॉट रोग भी कहा जाता है। यह रोग प्रोटोजोवन परजीवी के कारण होता है। यह रोग होने पर मछलियों के ऊपरी भागों एवं पंखों पर छोटे-छूटे सफेद रंग के फफोले उभरने लगते हैं। प्रभावित मछलियां अपने शरीर को तालाब से किनारे भूमि पर घसीटने लगती हैं। तालाब का पानी दुषित होने पर यह रोग तेजी से फैलता है। इस रोग पर नियंत्रण के लिए प्रति एकड़ तालाब में 120 से 200 किलोग्राम क्विक लाइम का छिड़काव करें।

  • टेल/फिन रॉट रोग : यह एक जीवाणु जनित रोग है। मीठे पानी की मछलियों को यह रोग अधिक होता है। इस रोग से प्रभावित मछलियों की पूंछ एवं पंख (फिन) सड़ने लगते हैं। पंख पर सफेद रंग की धारियां नजर आने लगती हैं। इस रोग पर नियंत्रण के लिए सबसे पहले प्रति लीटर पानी में 10 से 20 किलोग्राम पोटैशियम परमैगनेट की दर से घोल तैयार करें। इसके बाद प्रभावित मछलियों को प्रति दिन 1 घंटे तक इस घोल में डुबो कर रखें। इससे करीब 7 से 10 दिनों में इस रोग से छुटकारा मिलता है। इसके अलावा पटरी लीटर पानी में 500 किलोग्राम कॉपर सल्फेट मिला कर प्रभावित मछलियों को प्रति दिन 1 घंटे तक रखने से 10 से 15 दिनों में इस रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है।

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