भारत में लोबिया की खेती पूरे साल की जाती है। लोबिया एक दलहनी फसल है। इसके साथ ही इसका प्रयोग सब्जी, हरी खाद और चारे के लिए भी किया जाता है। लोबिया कम समय में पककर तैयार हो जाने वाली फसल है। साथ ही यह फसल सूखे की स्थिति सहन कर सकती है, जो किसानों के लिए इसे फायदेमंद बनाती है। लोबिया की खेती सभी प्रकार की भूमि में की जाती है। हालांकि फसल की बढ़वार और उत्पादकता को बढ़ाने के लिए सभी पोषक तत्वों से युक्त उर्वरक प्रबंधन करना एक मुख्य पहलू है। जिससे जुड़ी अधिक जानकारी आप यहां से देख सकते हैं।
लोबिया में पोषक तत्वों की कमी से होने वाले नुकसान
लोहे (आयरन) की कमी से पत्तियां लाल होने लगती हैं।
बोरोन की कमी से पौधों की बढ़वार रुक जाती है और फूल और फलियां गिरने लगती हैं।
पौधों में मैंगनीज की कमी का असर नई पत्तियों में अधिक देखने को मिलता है। पत्तियां पीली धूसर या लाल धूसर होने लगती हैं।
पौधों में तांबे (कॉपर) की कमी से पत्तियां गहरी पीली रंग की हो जाती हैं और फलियों में दाने नहीं बन पाते हैं।
पौधों में क्लोरीन की कमी से फसल देर में पकती है। लेकिन फसल में क्लोरीन की कमी कार्बनिक खाद, पानी आदि से दूर हो जाती है। इसके लिए अलग से उर्वरक डालने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
लोबिया में बढ़वार के लिए उचित उर्वरक
खेत की अंतिम जुताई के समय 2 से 4 टन प्रति एकड़ की दर से गोबर की खाद का प्रयोग करें।
7.5 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस प्रति एकड़ के अनुसार खेत की अंतिम जुताई के समय डालें।
खेत में पोटाश की कमी होने पर ही इसका प्रयोग करें।
खेत में जिंक की कमी होने पर 8 से 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति एकड़ के हिसाब से डालें।
बोरॉन की कमी होने पर बोरेक्स का प्रयोग 6 से 8 किलोग्राम प्रति एकड़ के अनुसार प्रयोग करें।
खेत में मोलिब्डेनम की कमी होने पर 250 ग्राम अमोनियम मोलिब्डेट को प्रति एकड़ खेत के अनुसार डालें।
उर्वरकों के प्रयोग से पहले मिट्टी की जांच अवश्य करा लें।
उर्वरकों को बीज से 3 से 4 सेंटीमीटर नीचे होना चाहिए।
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