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लोबिया की फसल में पीलेपन की बीमारी और उसका प्रबंधन
लोबिया की फसल में पीलेपन की बीमारी और उसका प्रबंधन
लोबिया भारत की दलहनी फसलों की एक मुख्य फसल है। जिसमें भरपूर मात्रा में पोषक तत्व होने के कारण इसकी मांग पूरे साल बनी रहती है। लोबिया को कई जगहों पर चौला के नाम से भी जाना जाता है। कई तरह के व्यंजनों में प्रयोग के साथ इसका प्रयोग पशुओं के लिए चारे के रूप में भी किया जाता है। लोबिया की खेती में किसानों को खेत की तैयारी करते समय कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। साथ ही फसल उगने के बाद फसल में पीला मोजेक रोग की समस्या सामान्यतः पैदावार में कमी का एक बड़ा कारण बनकर सामने आती है। पीला मोजेक रोग एक विषाणु जनित बीमारी है, जो फसल में सफेद मक्खी के कारण फैलता है। रोग के फैलने का खतरा बरसात के मौसम में सबसे अधिक होता है और यह बीमारी एक बड़े पैमाने पर फसल में पैदावार को नुकसान पहुंचाने का काम करती है। लोबिया की फसल में पीला मोजेक रोग से नियंत्रण के उपाय यहां से देखें।
लोबिया की फसल में पीला मोजेक रोग से होने वाले नुकसान
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पत्तियों पर पीले धब्बे दिखने लगते हैं।
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पौधों का विकास रुक जाता है।
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पत्ते सिकुड़ने लगते हैं।
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पैदावार में कमी देखने को मिलती है।
लोबिया की फसल में पीला मोजेक रोग के नियंत्रण के उपाय
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रोगी पौधो को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए।
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स्वस्थ तथा अच्छे पौधों से प्राप्त बीज को ही बीज उत्पादन के काम मे लाना चाहिए।
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2 ग्राम मैंकोजेब दवा का 1 लीटर पानी के साथ घोल बनाकर संक्रमित पौधों पर छिड़काव करें।
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400 मिलीलीटर मैलाथियान 50 ई.सी. को 200 लीटर पानी के साथ मिलाकर एक एकड़ के अनुसार छिड़काव करें।
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200 से 250 मिलीलीटर मेटासिस्टाक्स की मात्रा को 200 से 250 लीटर पानी के साथ मिलाकर एक एकड़ में छिड़काव करें।
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40 ग्राम थायोमेथोक्साम की मात्रा को 200 से 250 लीटर पानी के साथ मिलाकर एक एकड़ में छिड़काव करें।
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लक्षण रहने पर हर 15 से 20 दिन बाद दवाओं का छिड़काव करते रहें।
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