पोस्ट विवरण
लीची की खेती : बेहतर पैदावार के लिए ऐसे करें पौधों की रोपाई
लीची की खेती : बेहतर पैदावार के लिए ऐसे करें पौधों की रोपाई
कैल्शियम, प्रोटीन, फॉस्फोरस, विटामिन सी एवं कई अन्य खनिज तत्वों से भरपूर लीची के उत्पादन में भारत को दूसरा स्थान प्राप्त है। लीची के पेड़ गर्म, आर्द्र जलवायु में पनपते हैं। उन्हें एक अलग सर्दी और गर्मी के मौसम के साथ उपोष्णकटिबंधीय से उष्णकटिबंधीय जलवायु की आवश्यकता होती है। लीची की खेती के लिए आदर्श तापमान सीमा 20°C से 32°C (68°F से 89.6°F) के बीच होती है। वहीं अच्छी जल निकासी वाली औऱ थोड़ी अम्लीय से लेकर तटस्थ मिट्टी में अच्छी फसल देते हैं। यदि आप भी करना चाहते हैं लीची की खेती तो पौधों की रोपाई का समय एवं पौधों की रोपाई की विधि जानने के लिए इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें। आइए लीची के पौधों की रोपाई से जुड़ी जानकारियों पर विस्तार से चर्चा करें।
नए पौधों की रोपाई का सही समय
-
लीची के पौधों की रोपाई के लिए जुलाई से अक्टूबर तक का समय सर्वोत्तम है।
-
लीची के नए पौधों को गर्म और ठंडी हवा से बचाने के लिए पौधों के आस-पास जामुन या अन्य वृक्षों को लगाएं।
पौधों की रोपाई की विधि
-
जुलाई से अक्टूबर में पौध रोपाई के लिए अप्रैल से जून महीने के बीच गड्ढे तैयार कर लें।
-
सभी गड्ढों को लगभग 1 मीटर की चौड़ाई और 1 मीटर की गहराई के अनुसार तैयार करें।
-
इन गड्ढों को कुछ दिन खुला रहने दें, इससे मिट्टी में मौजूद कीट एवं खरपतवार तेज धूप के कारण नष्ट हो जाएंगे।
-
वर्षा ऋतू के आगमन के समय मिट्टी में सड़ी हुई गोबर की खाद, नीम की खली, सिंगल सुपर फास्फेट अच्छी तरह मिला कर गड्ढों को भरें और हल्की सिंचाई करें।
-
हल्की सिंचाई करने से गड्ढों में मिट्टी अच्छी तरह दब जाएगी।
-
वर्षा होने पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।
-
पौधों को लगाने के लिए भरे गए गड्ढों के बीच खुरपी की सहायता से छोटा गड्ढा करें।
-
इन छोटे गड्ढों में पौधों को लगा कर मिट्टी भर दें।
-
लीची के पौधों को 10 मीटर की दूरी पर लगाएं।
-
पौधों की रोपाई के बाद हल्की सिंचाई करें।
उर्वरक प्रबंधन
-
शुरुआत के 2 से 3 वर्षों तक लीची के प्रत्येक पौधे में प्रति वर्ष 10 से 20 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद, 300-900 ग्राम CAN यानी किसान खाद, 200 से 500 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट और 150 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश डालना चाहिए।
-
खाद की पूरी मात्रा के साथ उर्वरकों की आधी मात्रा जुलाई महीने में डालें।
-
आधे बचे हुए उर्वरकों का प्रयोग सितंबर महीने में करें।
-
पौधों के बढ़ने के साथ खाद की मात्रा में भी वृद्धि करें।
-
खाद देने के बाद सिंचाई अवश्य करें।
-
नीम की खली और कम्पोस्ट खाद के प्रयोग से फलों की गुणवत्ता और पैदावार में वृद्धि होती है।
-
फलों की तुड़ाई के तुरंत बाद खाद का प्रयोग करें। इससे पौधों में कल्लों का अच्छा विकास होता है।
-
जिंक की कमी होने पर प्रति एकड़ की दप से 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट का छिड़काव करें।
ध्यान रहे कि ऊपर बताए गए सभी उर्वरक की मात्रा का प्रयोग केवल शुरुआत के 3 साल तक के समय के लिए ही करें। पौधों में 3 साल के लगभग दो गुनी उर्वरक मात्रा की आवश्यकता होती है, जिसकी सटीक जानकारी के लिए देहात कृषि विशेषज्ञों से 1800-1036-110 पर कॉल कर संपर्क करें।
जारी रखने के लिए कृपया लॉगिन करें
फसल चिकित्सक से मुफ़्त सलाह पाएँ