लेमन ग्रास के पत्ते लंबे और हरे रंग के होते हैं। यह औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं। हर्बल और आयुर्वेदिक कंपनियों में इसकी मांग बढ़ती ही जा रही है। इसकी एक बार रोपाई करने के बाद 5-6 वर्षों तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। लेमन ग्रास की प्रमुख किस्में, जलवायु, रोपाई, कटाई आदि की जानकारियां यहां से प्राप्त करें।
प्रमुख किस्में
भारत में लेमन ग्रास की कई किस्मों की खेती की जाती हैं।
जिनमे प्रगती, प्रामण, ओडी 19, ओडी 408, एसडी 68, आरआरएल 16, आरआरएल 39, सीकेपी 25, कृष्णा, कावेरी शामिल हैं।
जलवायु एवं मिट्टी
लेमन ग्रास की खेती उष्ण एवं उपोष्ण दोनों प्रकार की जलवायु में की जा सकती है।
इसकी खेती 5 से 7 पी.एच स्तर तक की मिट्टी में की जाती है।
इसके लिए लगभग सभी प्रकार की मिट्टी उपयुक्त है। लेकिन अच्छी पैदावार के लिए दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है।
इसकी खेती के लिए ऐसी मिट्टी का चयन करना चाहिए जिसमे जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो।
इसकी खेती हल्की लेटराइटिक लाल मिट्टी में भी की जा सकती है। लेकिन ऐसी मिट्टी में अधिक मात्रा में उर्वरक के प्रयोग की आवश्यकता होती है।
रोपाई का सही समय एवं सिंचाई
वर्षा ऋतू के आगमन के साथ इसकी रोपाई कर देनी चाहिए।
रोपाई के लिए जुलाई का पहला सप्ताह सबसे उत्तम समय है।
संचित क्षेत्रों में इसकी रोपाई फरवरी - मार्च में करें।
लेमन ग्रास को अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती है।
गर्मी के मौसम में 12 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।
इसके अलावा हर कटाई के बाद एक बार सिंचाई करना जरूरी है।
कटाई
रोपाई के करीब 3 महीने बाद पहली कटाई की जाती है।
इसके बाद प्रति 8 से 10 सप्ताह के अंतराल पर इसकी कटाई कई जा सकती है।
इस तरह प्रति वर्ष 4 - 5 कटाई की जाती है।
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