लैवेंडर एक सदाबहार पौधा है। इसकी खेती ताजे फूल प्राप्त करने के साथ तेल प्राप्त करने के लिए की जाती है। लैवेंडर में कई औषधीय गुण भी पाए जाते हैं। इसके तेल से साबुन, इत्र, एवं कई अन्य सौंदर्य प्रसाधन भी तैयार किए जाते हैं। इसके अलावा इससे चाय एवं कई अन्य खाद्य पदार्थ भी तैयार किए जाते हैं।
लैवेंडर के पौधे 2 से 3 फीट ऊंचे होते हैं। इसके फूल नीले एवं बैंगनी रंग के होते हैं। इसकी खेती किसानों के लिए मुनाफे का सौदा साबित हो सकती है। आइए लैवेंडर की खेती से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त करें।
लैवेंडर की खेती का सही समय
इसकी नर्सरी तैयार करने के लिए नवंबर-दिसंबर का महीना उपयुक्त है।
लैवेंडर की खेती का सही तरीका
इसकी खेती बीज की बुवाई के साथ पौधों के कलम की रोपाई कर के भी की जाती है।
हालांकि बीज की रोपाई से ज्यादा इसकी खेती पौधों की कटिंग लगा कर की जाती है।
पौधों की कटिंग के लिए 1 या 2 वर्ष की आयु के पौधों का चयन करें।
उपयुक्त मिट्टी एवं जलवायु
इसकी खेती कार्बनिक पदार्थ से भरपूर मिट्टी में करनी चाहिए।
हल्की क्षारीय मिट्टी में खेती करने पर पौधों में तेल की मात्रा अधिक होती है।
मिट्टी का पी.एच. स्तर 7 से 8 के बीच होना चाहिए।
पौधों के बेहतर विकास के लिए ठंडे मौसम की आवश्यकता होती है।
लैवेंडर के पौधे अधिक गर्मी सहन नहीं कर पाते हैं।
अधिक वर्षा भी पौधों के लिए हानिकारक है।
बीज के अंकुरण के लिए 12 से 15 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है।
पौधों के विकास के लिए 20 से 22 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान होना चाहिए।
लैवेंडर के पौधे न्यूनतम 10 डिग्री सेंटीग्रेड और अधिकतम 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान सहन कर सकते हैं।
खेत की तैयारी एवं पौधों की रोपाई
सबसे पहले खेत में 1 बार गहरी जुताई करें और कुछ दिनों तक खुला रहने दें।
इसके बाद खेत में अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाएं और सिंचाई करें।
सिंचाई के कुछ दिनों बाद जब मिट्टी की ऊपरी परत सूखने लगे तब खेत में हल्की जुताई करें।
जुताई के बाद मिट्टी को समतल एवं भुरभुरी बनाने के लिए पाटा लगाएं।
पौधों की रोपाई के लिए खेत में मेड़ तैयार करें।
सभी मेड़ों के बीच करीब 1 मीटर की दूरी रखें।
पौधों की रोपाई 25 से 30 सेंटीमीटर की दूरी पर करें।
सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण
पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।
रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें।
मिट्टी में नमी की मात्रा बनाए रखने के लिए आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करें।
खेत में जल जमाव न होने दें।
खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए पौधों की रोपाई के करीब 20 दिनों बाद हल्की निराई-गुड़ाई करें।
पहली निराई-गुड़ाई के करीब 20 से 30 दिनों बाद दूसरी निराई-गुड़ाई करें।
पौधों की कटाई के बाद भी निराई-गुड़ाई करनी चाहिए।
पौधों की कटाई
पौधों में 50 प्रतिशत तक फूल आने के बाद पौधों की कटाई करें।
पौधों की कटाई भूमि की सतह से कुछ सेंटीमीटर की ऊंचाई पर करें।
फूल के साथ काटी गई शाखाओं की लम्बाई कम से कम 12 सेंटीमीटर होनी चाहिए।
ताजे फूलों की बिक्री के अलावा फूलों को सूखा कर भी बेच सकते हैं।
इसके अलावा बाजार में लैवेंडर के तेल की मांग भी बहुत होती है।
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