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लैंवेडर: खुशबूदार उत्पाद के साथ औषधीय निर्माण में भी सहायक

लैंवेडर: खुशबूदार उत्पाद के साथ औषधीय निर्माण में भी सहायक

लैंवेडर एक फूल वर्गीय फसल है, जिसका उपयोग कई प्रकार के खुशबूदार उत्पादों जैसे साबुन, शैंपू, रूम फ्रेशनर से लेकर विभिन्न प्रकार के खाद्य उत्पादों और चिकित्सकीय रूप में भी किया जाता है। भारत में लैवेंडर की खेती मुख्यतः कश्मीर के क्षेत्रों में की जाती है जिसे एक बड़े स्तर तक पहुंचाने के लिए सरकार द्वारा प्रोत्साहन के रूप अरोमा मिशन जैसे कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं। फसल की खास बात यह है कि फसल को केवल एक बार लगाए जाने पर यह 14 साल तक उत्पादन देती है और प्रति वर्ष किसान की खेतों में होने वाली साफ सफाई पर लगने वाली लागत के साथ किसानों को लाखों रुपयों तक का फायदा पहुंचा सकती है।

लैवेंडर की खेती कम सिंचाई वाले बंजर इलाकों में पूर्ण रूप से संभव है। इसके अलावा फसल में कीट-रोगों एवं जानवरों का खतरा न होने के कारण किसान देखरेख में खर्च होने वाले अपने समय एवं पैसों की आसानी से बचत कर सकते हैं। लैवेंडर की खेती के लिए फरवरी से अप्रैल या नवंबर से दिसंबर का समय उचित माना गया है। फूलों के लगने का समय जून से जुलाई का होता है। किसानों को इस समय पर यह ध्यान देने की आवश्यकता होती है कि फूलों की तुड़ाई पंखुड़ियों के केवल 60 प्रतिशत तक खिलने पर कर देनी चाहिए। जिसके उपरांत फूल धीरे-धीरे सूखने लगते हैं और फसल से तेल कम प्राप्त होता है।

औषधीय गुण

  • तनाव एवं अनिद्रा की समस्या को दूर करने के लिए लैवेंडर को उपयोगी माना गया है।

  • बाल एवं त्वचा  संबंधी समस्या उत्पादों में लैंवेडर का उपयोग किया जाता है।

  • लैवेंडर फंगल इंफेक्शन और घाव को भरने में भी प्रभावी रूप से कार्य करता है।

उपयुक्त मिट्टी

  • लैवेंडर की खेती के लिए कार्बनिक पदार्थों से युक्त मिट्टी की आवश्यकता होती है। हालांकि रेतीली, पहाड़ी एवं मैदानी इसे किसी भी प्रकार की मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है।

  • मिट्टी का पीएच मान 7 से 8 होना चाहिए।

  • भूमि उचित जल निकास युक्त होनी चाहिए।

बुवाई का तरीका

  • लैवेंडर की बुवाई बीज और पौधे दोनों प्रकार से की जा सकती है।

  • नर्सरी में बीज की बुवाई के लिए नवंबर से दिसंबर का समय उचित होता है। साथ ही 12 से 15 डिग्री के तापमान पर पौधे अच्छी तरह से विकास करते हैं।

  • पौधों की रोपाई के लिए खेत में मेड़ बनाई जाती हैं। मेड़ के बीच की दूरी एक से डेढ़ मीटर होनी चाहिए।

  • पौधों के बीच की दूरी 25 से 30 सेंटीमीटर रखें। वहीं सघन खेती के लिए पौधों को 5 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाना चाहिए।

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लैवेंडर की खेती से जुड़ी अधिक जानकारी के लिए आप टोल फ्री नंबर 1800-1036-110 के माध्यम से देहात के कृषि विशेषज्ञों से जुड़कर उचित सलाह लें सकते हैं। इस जानकारी को अन्य किसानों तक पहुंचाने के लिए इस पोस्ट को लाइक और शेयर करना न भूलें।

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