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कटहल की खेती
कटहल की खेती
कटहल की खेती बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और दक्षिण भारत के कई राज्यों में की जाती है। कटहल के कच्चे फलों के साथ पके हुए फलों का भी प्रयोग किया जाता है। बाजार में इसकी अच्छी मांग होने के कारण किसान कटहल की खेती कर के अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। इसके पौधों को अधिक देखभाल की आवश्यकता नहीं होती है। यहां हम कटहल की खेती के लिए कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां दे रहे हैं , जिन पर अमल कर के आप कटहल की बेहतर पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।
रोपाई का समय
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नए पौधों की रोपाई के लिए जून से दिसंबर तक का महीना सबसे बेहतर है।
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इसके पौधों को वर्षा के मौसम में लगाना अच्छा होता है।
मिट्टी एवं जलवायु
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कटहल की खेती लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है।
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बेहतर पैदावार के लिए इसकी खेती गहरी दोमट मिट्टी और बलुई दोमट मिट्टी में करें।
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कटहल के लिए शुष्क जलवायु और नम जलवायु दोनों अच्छी मानी जाती है।
खेत की तैयारी एवं पौधों की रोपाई
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खेत तैयार करते समय सबसे पहले खेत की 1 बार गहरी जुताई करनी चाहिए।
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इसके बाद खेत में 2-3 बार हल्की जुताई करके खेत को समतल बना लें।
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अब खेत में 1 मीटर चौड़ी और 1 मीटर गहराई में गड्ढे तैयार करें।
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सभी गड्ढों को कुछ दिन खुला रहने दें।
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इसके बाद सभी गड्ढों में 20 से 25 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद के साथ 250 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट , 500 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश, 1 किलोग्राम नीम की खली को मिट्टी में मिलाकर सभी गड्ढों में भरें।
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इन गड्ढों में पौधों की रोपाई करें।
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पौधों से पौधों की दूरी 8 मीटर रखें।
सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण
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कटहल के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।
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वर्षा के मौसम में यदि वर्षा ना हो तब ही सिंचाई करें।
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गर्मियों के मौसम में 15 से 20 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।
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खेत को खरपतवार से मुक्त रखने के लिए थोड़े-थोड़े समय के अंतराल पर निराई-गुड़ाई करते रहें।
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साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि खेत में जल जमाव न हो।
पैदावार
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रोपाई के 3 से 4 वर्ष बाद पौधों में फल आने शुरू हो जाते हैं।
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8 से 10 वर्ष के प्रति पेड़ से 100 से 250 किलोग्राम तक कटहल के फलों की उपज होती है।
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