बोरॉन खाद की पौधों के लिए जरूरत एवं इसकी कमी से फसलों पर पड़ने वाले कुप्रभावों पर कृषि-विशेषज्ञों की क्या राय है, आईये समझने की कोशिश करते हैं।
सबसे पहले पौधों की नई पत्तियों व कलिकाओं में इसका प्रभाव देखने को मिलता हैं। बोरॉन की कमी से फूल तो आते हैं लेकिन परागकणों की नपुंसकता बढ़ जाती है, जिससे फसलों के गुणवत्ता व ऊपज पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके आलावा बोरॉन की कमी से पौधों की शीर्षस्थ भाग की वृद्धि रुक जाती है। कच्चे फलों का गिरना बढ़ जाता है तथा फलों का आकार भी टेढ़ा-मेढ़ा हो जाता है।
साथ ही पौधों में जड़ों की वृद्धि रुक जाती है। कई बार फल व तने भी फटने लगते हैं तथा फलदार वृक्षों के तने से गोंद जैसा पदार्थ निकलने लगता है। हालांकि द्विबीजपत्री फसलों में बोरॉन तत्व की आवश्यकता एकबीजपत्री फसलों की तुलना में अधिक होती है।
द्विबीजपत्री फसलों की यदि हम बात करें तो फूलगोभी, ब्रोकली, सरसों, मूँगफली, चुकंदर, शलजम, सूरजमुखी, आम, कटहल, लीची, अंगूर इत्यादि फसलों में बोरॉन की अधिक आवश्यकता पड़ती है। वहीं प्याज, आलू, खीरा, ककड़ी, गेंहूँ, जौ, स्ट्राबेरी, नींबू इत्यादि फसलों में बोरॉन की आवश्यकता अपेक्षाकृत कुछ कम पड़ती है।
इसके प्रयोग की हम बात करें तो मिट्टी की जरूरत के अनुसार 3-4 कि.ग्रा. बोरॉन प्रति एकड़ की दर से प्रयोग कर सकते हैं। जल्दी प्रभाव देखने के लिए फसल की पत्तियों पर छिड़काव के लिए 1-1.5 ग्रा. बोरॉन (20 %) प्रति लीटर पानी में घोलकर इसका प्रयोग करें। अगर आपको ये जानकारी महत्वपूर्ण लगी है तो हमारे इस पोस्ट को लाइक करें, एवं इसे अन्य किसानों के साथ साझा करें।
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