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कपास में उकठा रोग की समस्या और उनकी रोकथाम
कपास में उकठा रोग की समस्या और उनकी रोकथाम
उकठा रोग एक मृदा जनित रोग है, जो फ्यूजेरियम स्पीशीज नामक फफूंद के कारण होता है और देसी कपास की फसल में मुख्य रूप से देखने को मिलता है। कई क्षेत्रों में इस रोग को उखेड़ा रोग के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग के लक्षण पौधों में सिंचाई के बाद लगभग 30 से 40 दिनों के बाद दिखाई देते हैं। यह रोग जमीन से पौधों की जड़ों पर हमला करता है और पौधों को कमजोर कर देता है। इस रोग के कारण पौधे जमीन से उखड़ने लगते हैं। जिससे पैदावार में भारी कमी देखने को मिलती है। कपास में उकठा रोग के प्रभाव को शुरुआती दौर में किए उपचार से कम किया जा सकता है। कपास में उकठा रोग से होने वाले नुकसान और बचाव के तरीकों की जानकारी यहां देखें।
कपास की फसल में उकठा रोग से होने वाले नुकसान
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कपास के बीज उगने से पहले ही सड़ने लगते हैं।
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फसल की वृद्धि धीमी हो जाती है।
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पौधों की संख्या घट जाती है।
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फसल के उत्पादन में कमी देखने को मिलती है।
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पौधे मुरझाने लगते हैं।
कपास की फसल में उकठा रोग के रोकथाम के लिए जैविक उपाय
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नाइट्रोजन के अधिक प्रयोग से बचें।
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जुताई के बाद मिट्टी को तेज धूप में छोड़ दें।
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खेत में फसलों का चक्रीकरण करते रहें।
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पौधों के बीच अधिक स्थान छोड़ें।
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फफूंद या सूखा सहन कर पाने वाली किस्मों को उगाएं।
कपास की फसल में उखेड़ा रोग के रोकथाम के लिए रासायनिक उपाय
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2 ग्राम कोबाल्ट क्लोराइड को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के अनुसार छिड़काव करें।
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50 किलो डी-ए-पी उर्वरक को 10 किलो मैग्नीशियम सल्फ़ेट और 5 किलो प्सल्फर को एक साथ रगड़कर प्रति एकड़ में रिंग विधि द्वारा डालें।
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मिट्टी या प्लास्टिक के बर्तन में 600 ग्राम गंधक के अम्ल से 6 किलोग्राम बीजों को उपचारित करें। मिश्रण को निरंतर चलाते रहें और रेशे जल जाने पर बीजों को 10 लीटर पानी में डाल दें।
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अब बीजों को 2 से 3 बार साफ पानी से धोकर 1 मिनट तक 50 ग्राम सोडियम बाइकार्बोनेट के साथ 10 लीटर पानी के मिश्रण में डुबोए और पुनः साफ पानी से उन्हें धो दें।
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