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कपास में हरा तेला/ फुदका से ऐसे करें प्रबंधन
कपास में हरा तेला/ फुदका से ऐसे करें प्रबंधन
परिचय
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बरसात के समय में कपास की फसल में हरा तेला और फुदका जैसे रस चूसक कीट का प्रभाव अधिक देखने को मिलता है।
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कीटों का प्रकोप जून से सितम्बर तक बना रहता है।
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देर से बोई गई फसल पर इस कीट का प्रकोप अधिक होता है ।
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यह कीट एक प्रकार का विषैला पदार्थ स्रावित करता है जो कि पत्तियों पर प्रतिकूल असर डालता है और पौधे का पूरी तरह से विकास नहीं हो पाता है।
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ये रस चूसक कीट पौधों की पत्तियों से हरे पदार्थ का सेवन करते हैं। जिससे फसल की उत्पादकता और गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
कीट के लक्षण
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पत्तियां किनारों से मुड़ी चमकीली और तैलीय दिखाई देती हैं।
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पत्तियां नीचे की ओर मुड़ी हुई होती है और सिकुड़ जाती है।
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शुरुआत में पत्तियों के किनारों का रंग पीला फिर बाद में लाल-गुलाबी दिखाई देता है और अंत में पत्तियां ऐंठी हुई दिखने लगती हैं।
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अधिक संक्रमण होने पर पत्तियां झुलस जाती हैं और सूख कर गिरने लगती हैं।
नियंत्रण के उपाय
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खेत में नाइट्रोजन के अधिक प्रयोग से बचें।
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कीट के प्रति प्रतिरोधी और सहनशील किस्मों का प्रयोग करें।
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ये कीट खरपतवार को अपना आश्रय बना लेते हैं इसलिए खेत में खरपतवार न उगने दें।
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कपास में हरा तेला/ फुदका कीट से रोकथाम के लिए एसेफेट 50% ई.सी. के साथ इमिडाक्लोप्रिड 1.8% एसपी की 400 ग्राम मात्रा को 200-300 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ में छिड़काव करें।
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थियामेथॉक्सम 25% डब्ल्यू जी की 100 ग्राम मात्रा को 200-300 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़कें।
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कार्बोफ्यूरान 3 जी की 14 किलोग्राम मात्रा या फोरेट 10 जी की 5 किलोग्राम मात्रा को प्रति एकड़ के अनुसार नमी युक्त मिट्टी में पौधों की जड़ों के पास डालें।
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