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कपास में गुलाबी इल्ली कीट (पिंक बॉलवर्म) से ऐसे करें फसल का बचाव
कपास में गुलाबी इल्ली कीट (पिंक बॉलवर्म) से ऐसे करें फसल का बचाव
कपास भारत की मुख्य खरीफ फसलों में से एक है। भारत में लगभग 11 मिलियन हेक्टेयर जमीन पर कपास की खेती की जाती है। इस साल की फसल बुवाई सभी कपास की खेती वाले क्षेत्रों में पूर्ण हो चुकी है और कई जगहों पर पौधों पर फूल बनने के बाद इसपर कीट और रोगों का प्रभाव भी दिखना शुरू हो गया है। कपास में इस समय गुलाबी इल्ली कीट का प्रकोप किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। यह कीट अपना पूरा जीवन चक्र कपास के पौधे पर बिताता है। छोटे पौधे, कली व फूल को नुकसान पहुंचा कर यह कीट फसल को पूरी तरह से बर्बाद करने की क्षमता रखता है।
पिंक बॉलवर्म कीट की पहचान
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कीट का वैज्ञानिक नाम प्लैटीएड्रा (पैक्टिनोफोरा) गासीपिएला है, जो लेपिडोप्टेरा गण के गेलीकाइडी वर्ग का कीट है।
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व्यस्क कीट छोटा, गहरे भूरे रंग का पतंगा होता है। जो पंख फैलाकर 1.5 से.मी. तक लम्बा हो सकता है।
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कीट की सुंडी गुलाबी-खाकी रंग की होती है।
कीट से फसल में नुकसान
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कीट का लार्वा पुरानी फसल के डंठल में रहता है और नई फसल में अपने जीवन चक्र को पूरा करता है।
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व्यस्क कीट कपास की बढ़ती फसल में अंडे देता है। जिससे निकले लार्वा केवल कलियों या फूलों को अपना भोजन बनाते हैं। पौधों में कली न निकलने की अवस्था में कीट का लार्वा फसल को बिना नुकसान पहुंचाए ही मर जाते हैं।
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डोडे क्षतिग्रस्त हो जाने के कारण भूमि पर गिर जाते है एवं पूर्ण विकसित होने से पूर्व ही खुल जाते हैं और फफूंद की चपेट में आ जाते हैं।
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लार्वा डोडे में प्रवेश कर छिद्र को ऊपर से रेशमी जाले से ढक देते हैं। जिससे बाहर से फसल की क्षति का अनुमान लगाना कठिन होता है।
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कीट के प्रकोप से रूई की गुणवत्ता में कमी आती है।
नियंत्रण के उपाय
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फसल में कीट के प्रकोप होने पर क्षतिग्रस्त डोडों को तोड़कर नष्ट कर दें।
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जुलाई-अगस्त के महीने में कीट व्यस्क अधिक सक्रिय होते हैं। इनके नियंत्रण के लिए खेत में प्रकाश ट्रैप लगाएं।
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परजीवी नियंत्रण द्वारा भी इस कीट की रोकथाम की जा सकती है। यह पाया गया है कि 49 प्रतिशत तक कीट की संख्या परजीवियों से नियंत्रित की जा सकती है।
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क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल (10%) के साथ लैम्ब्डा-सिहलोथ्रिन 5 % जेडसी की 100 मिलीलीटर मात्रा को 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से खेत में छिड़कें।
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डेल्टामेथ्रिन 11% ई.सी. की 200 मिलीलीटर मात्रा को छिड़काव 150 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ खेत में छिड़कें।
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