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कहीं अंकुरण से पहले ही नष्ट न हो जाए प्याज की फसल
कहीं अंकुरण से पहले ही नष्ट न हो जाए प्याज की फसल
विश्व में प्याज की खेती में भारत का दूसरा स्थान है। भारत से नेपाल, पकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, आदि कई देशों में प्याज का निर्यात भी किया जाता है। हल्के तीखे स्वाद के बावजूद कई व्यंजनों का जायका बढ़ाने में प्याज की महत्वपूर्ण भूमिका है। जहां तक रहा सवाल प्याज की फसल में होने वाले रोगों की तो गलका रोग प्याज की फसल में एक बड़ी समस्या बन कर उभर रही है। प्याज की खेती करने वाले लगभग सभी क्षेत्रों में इस रोग का प्रकोप होता है। इस रोग की चपेट में आने पर नर्सरी में करीब 20 से 25 प्रतिशत तक फसल बुरी तरह प्रभावित हो जाती है। वातावरण में अधिक नमी के कारण इस रोग का प्रकोप अधिक होता है।
बात करें गलका रोग के लक्षण की तो, प्याज की फसल में गलका रोग का प्रकोप दो चरणों में हो सकता है, जैसे अंकुरण के पूर्व एवं अंकुरण के बाद। अंकुरण से पहले गलका रोग होने पर कंद अंकुरित होने से पहले ही सड़ जाते हैं। वहीं यदि पौधे अंकुरण के बाद गलका रोग से प्रभावित होते हैं तो पौधों के विकास में बाधा आती है। केवल इतना ही नहीं, तना कमजोर एवं चिचिपा भी हो जाता है। जिससे तने पर भूरे या काले रंग के घाव एवं धब्बे नजर आने लगते हैं। कुछ समय बाद पौधे भूमि की सतह के पास से कट कर नीचे गिर जाते हैं।
गलका रोग पर नियंत्रण के तरीके
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बुवाई के लिए रोग रहित, प्रमाणित एवं उपचारित बीज का प्रयोग करें।
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मिट्टी सौर करण द्वारा इस संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए मई और जून महीनों के दौरान 25-30 दिनों के लिए नर्सरी बेड को पारदर्शी प्लास्टिक की शीट से ढक कर रखें।
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ट्राइकोडर्मा विरिडी या ट्राइकोडर्मा हरजियानम जैसे फफूंद जनित जैविक खाद के साथ मिट्टी को 2 किलोग्राम प्रति एकड़ में अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद या वर्मीकम्पोस्ट के साथ मिश्रित कर के नर्सरी की क्यारियों में प्रयोग करें।
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रोग के लक्षण नजर आते ही संक्रमित पौधों को नष्ट कर दें।
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नर्सरी एवं खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।
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गलका रोग से बचाव के लिए कार्बेन्डाजिम 25%+ मैन्कोजेब 50% डब्लू एस को 3 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर पौध के अंकुरण को उसमें डूबो कर उपचारित करें।
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