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केले के फलों में एन्थ्रेक्नोज रोग
केले के फलों में एन्थ्रेक्नोज रोग
भारत में करीब 4.9 लाख हेक्टेयर में केले की खेती की जाती है। भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में इसकी खेती की जा सकती है। लोकप्रिय फलों में शामिल केले की मांग प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। बढ़ती मांग के कारण केले की खेती की तरफ किसानों का रुझान भी बढ़ रहा है। केले के पौधों में कई तरह के रोग होते हैं जिनके प्रकोप से किसानों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। केले के विभिन्न रोगों में से एक है एन्थ्रेक्नोज रोग। इस रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के उपाय यहां से देखें।
रोग का कारण
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यह रोग कोलेट्रोट्राईकम मुसे नामक फफूंद के कारण होता है।
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यह हवा, पानी और केलों को खाने वाले चिड़ियों एवं चूहों द्वारा फैलता है।
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इस रोग के लिए अधिक तापमान अनुकूल है। यानि अधिक तापमान में यह रोग ज्यादा फैलता है।
रोग का लक्षण
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इस रोग के लक्षण छोटे पौधों में अधिक दिखाई देते हैं।
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पौधों की पत्तियों, फूल एवं फल के छिलके पर रोग के लक्षण देखे जाते हैं।
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रोग से ग्रस्त पौधों की पत्तियों एवं फूलों पर काले रंग के छोटे गोल धब्बे नजर आने लगते हैं।
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कुछ समय बाद केले के छिलकों पर भी काले धब्बे उभरने लगते हैं।
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रोग का प्रकोप बढ़ने पर पौधों के तने पर धब्बे बनने लगते हैं और बाद में तने सड़ने लगते हैं।
बचाव के उपाय
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केलों की फलियां दिखनी शुरू होने पर उनको संक्रामण से बचाने के लिए प्लास्टिक के बैग से ढकें।
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सड़ी हुई या सड़ रही पत्तियों एवं फूलों के बचे हुए भागों को भी हटा दें।
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इस रोग पर नियंत्रण के लिए प्रति लीटर पानी में 2 ग्राम कार्बेंडाजिम मिलाकर छिड़काव करें।
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इसके अलावा प्रति लीटर पानी में प्रोक्लोरॉक्स 0.15 प्रतिशत मिलाकर छिड़काव करें।
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प्रति लीटर पानी में 2.5 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड मिला कर छिड़काव करने से भी इस रोग से निजात पा सकते हैं।
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उपरोक्त फफूंदनाशी के साथ प्रति 15 लीटर पानी में 5 मिली एक्टिवेटर (स्टिकर या चिपकू) का अवश्य प्रयोग करें।
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फलों की समय पर कटाई करें। जब फल 3/4 प्रतिशत परिपक्व हो जाएं तब इसकी कटाई कर लें।
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