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केले के पौधों में मोको रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के तरीके

केले के पौधों में मोको रोग के लक्षण एवं नियंत्रण के तरीके

केले के पौधों को सिगाटोका रोग, गुच्छशीर्ष रोग, मोको रोग, आदि से बहुत नुकसान होता है। यदि आप केले की खेती करते हैं तो इन रोगों के लक्षण एवं बचाव की जानकारी होना आवश्यक है। इस पोस्ट के माध्यम से आप केले के पौधों में होने वाले मोको रोग का कारण, लक्षण एवं बचाव के तरीकों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। मोको रोग को जीवाणु म्लानि रोग के नाम से भी जाना जाता है। यह एक जीवाणु जनित रोग है। इस रोग के होने पर फसल का भारी नुकसान होता है। आइए इस पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें।

मोको रोग का कारण

  • यह रोग स्यूडोमोनारा सोलेनेसिएरम नामक जीवाणु के कारण होता है।

मोको रोग से होने वाले नुकसान

  • रोग की शुरुआत में पौधों की नई पत्तियां पीली होने लगती हैं।

  • कुछ समय बाद पीली पत्तियां सूख कर गिरने लगती हैं।

  • रोग बढ़ने के साथ पौधों की पुरानी पत्तियां भी पीली हो कर सूखने लगती हैं।

  • तने को काट कर देखने पर तना अंदर से पीले या भूरे रंग का नजर आता है।

  • रोग से प्रभावित फल ऊपर से स्वस्थ नजर आते हैं लेकिन फलों का गूदा भूरे रंग का हो जाता है।

  • पौधों के ऊपरी हिस्सों तक पोषक तत्व नहीं पहुंच पाते हैं।

मोको रोग पर नियंत्रण के तरीके

  • खेत तैयार करते समय जल निकासी की उचित व्यवस्था करें। इससे रोग के होने की संभावना कम हो जाएगी।

  • प्रभावित क्षेत्रों में केले के पौधों को लगाने से पहले खेत में 1 से 2 बार गहरी जुताई कर के कुछ दिनों तक खुला रहने दें। इससे खेत में पहले से मौजूद जीवाणु नष्ट हो जाएंगे।

  • रोग को फैलने से रोकने के लिए प्रभावित पौधों को नष्ट कर दें।

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